Thursday, July 26, 2018

एनडीए भगाओ बेटी बचाओ साइकिल यात्रा 28 जुलाई 2018

“बेटी सुरक्षा संवाद”को हो जाइये तैयार। "भाई तेज-तेजस्वी आ रहे आपके द्वार।। संस्कृतिक धरती गया से 28 जुलाई को सुबह 10 बजे साईकिल मार्च में शामिल होकर देश/प्रदेश के बहन-बेटियों की सुरक्षा के लिये एक प्रण करें।हर बहन को सुरक्षित रखना हम सभी का सामाजिक, नैतिक एबं मानवीय दायित्व है।।

चलेगी साईकिल उड़ेगा धूल।
न रहेगी तीर,न रहेगा फूल।।




CycleMarch4Girls
Babulinayat

Tuesday, July 24, 2018

28 जुलाई से तेजस्वी की साइकिल यात्रा


दरअसल, आरजेडी आगामी 28 जुलाई यानी बिहार विधानसभा मानसून सत्र के बाद एनडीए भगाओ, बेटी बचाओ साइकिल यात्रा निकालने जा रहा है. बता दें कि, साइकिल यात्रा की शुरुआत बिहार के गया से तेजस्वी यादव के नेतृत्व में होगी.

वहीं,राजद अररिया बिहार के युवा नेता बाबुल इनायत की मानें, तो गैंगरेप और राज्य में बढ़ते अपराध के खिलाफ बुद्ध की धरती गया से तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एनडीए भगाओ, बेटी बचाओ साइकिल मार्च ऐतिहासिक होगी.तेजस्वी यादव गया से साइकिल पर सवार होकर पटना पहुंचेंगे. आरजेडी ने इस यात्रा को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है. करीब 115 किलोमीटर इस यात्रा को सफल बनाने के बाद आरजेडी के पटना, जहानाबाद और गया जिले पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की लगातार बैठक हो रही है.
साइकिल मार्च में युवा आरजेडी के 5 हजार कार्यकर्ता शामिल होंगे. इसके लिए हर स्तर पर तैयारी जारी है. इसके लिए गया, जहानाबाद और पटना शहर में विभिन्न जगह तोरण द्वार, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर भी लगाए जायेंगे.
मालूम हो कि, आगामी 28 जुलाई को 10 बजे दिन में गया के गांधी मैदान से साइकिल यात्रा की शुरुआत होगी. 28 जुलाई को जहानाबाद में रात्रि विश्राम होगा.
फिर 29 जुलाई को जहानाबाद से रैली शुरू होगा और रात्रि विश्राम मसौढ़ी में होगा. फिर 30 जुलाई को साइकिल यात्रा से पटना पहुंचकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राज्यपाल सत्यपाल मलिक को ज्ञापन सौंपेंगे.

साइकिल चलाने की प्रैक्टिस कर रहे तेजस्वी, NDA सरकार को भगाने के लिए करेंगे लंबी यात्रा


साइकिल चलाने की प्रैक्टिस कर रहे तेजस्वी, NDA सरकार को भगाने के लिए करेंगे लंबी यात्रा

 मुजफ्फपुर कांड को लेकर एक ओर तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार पर लगातार हमला बोल रहे हैं, तो दूसरी ओर अपनी साइकिल यात्रा की भी जमकर तैयारी कर रहे हैं. इस साइकिल यात्रा को लेकर तेजस्वी यादव की एक फोटो वायरल हो रही है. जो उनके आधिकारिक आवास 5 सर्कुलर रोड के अंदर की है. जहां तेजस्वी यादव साइकिल चलाते दिख रहे हैं.

28 जुलाई से तेजस्वी की साइकिल यात्रा

दरअसल, आरजेडी आगामी 28 जुलाई यानी बिहार विधानसभा मानसून सत्र के बाद एनडीए भगाओ, बेटी बचाओ साइकिल यात्रा निकालने जा रहा है. बता दें कि, साइकिल यात्रा की शुरुआत बिहार के गया से तेजस्वी यादव के नेतृत्व में होगी.
तेजस्वी यादव गया से साइकिल पर सवार होकर पटना पहुंचेंगे. आरजेडी ने इस यात्रा को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है. करीब 115 किलोमीटर इस यात्रा को सफल बनाने के बाद आरजेडी के पटना, जहानाबाद और गया जिले पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की लगातार बैठक हो रही है.

Tuesday, July 17, 2018

संसद का मानसून सत्र सामने है। कांग्रेस ने बरसात में कम्बल ओढ़ने जैसा मुद्दा " महिला आरक्षण विधेयक " का बेसुरा राग अलाप दिया है। बेसुरा इसलिए कह रहा हूँ कि, कांग्रेस ने इस बिल को बिना किसी शर्त के समर्थन देने की बात कही है।
महिला आरक्षण विधेयक को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं। संसद में महिला आरक्षण बिल 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और इसका कई पुरुष सांसदों ने भारी विरोध किया था। फिर साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दोबारा पेश होने के बाद राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन लोकसभा में आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया।
तीसरे मोर्चे के घटक समाजवादी दलों सपा, बसपा, राजद ने इस बिल के प्रारूप का विरोध किया था। उंन्होने संसद में 33% महिलाओं के प्रतिनिधित्व में दलित,आदिवासी और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी इस आरक्षण में आरक्षण की माँग की थी।
ये शर्त जायज भी है। ज्ञात हो नेताजी मुलायम सिंह, लालू जी, शरद यादव, रामविलास पासवान,मायावती सहित सभी गैर कांग्रेसी गैर भाजपाई नेताओ का ये मानना था कि, दलित, ओबीसी महिलाओं के लिए अलग कोटा होना चाहिए और 33 फीसदी आरक्षण में अलग से कोटा होना चाहिए। सवर्ण और दलित, ओबीसी महिलाओं की सामाजिक हालत में फर्क होता है और दलित, ओबीसी महिलाओं ने ज्यादा शोषण झेला है। महिला बिल के रोटेशन के प्रावधानों में विसंगतियां हैं जिसे दूर करना चाहिए और फिर बिल पास कराना चाहिए।
कांग्रेस इस बिल का बिना शर्त समर्थन क्यों करना चाहती है ? क्या जिन कारणों से इसका विरोध हुआ था ,वो अब बदल गए ?
सनद रहे, जातीय जनगणना के मामले में कांग्रेस और बीजेपी पार्टियां आपस मे मौसेरी बहने हैं। अब महिला आरक्षण बिल के गड़े मुर्दे को खोदने के पीछे इनकी क्या फिक्सिंग है ? ये समझ से परे है।
गठबंधन और सरकार की घेराबंदी का समय है। ऐसे में सामाजिक न्याय, घोटाले, मोदी चोरो ,बेरोजगारी, सीमा सुरक्षा, महिला सुरक्षा ,किसान ,जवान के मुद्दे को छोड़कर ये क्या बहनापा निभाया जा रहा है ? ये नही चलेगा।
बाबुल इनायत

Wednesday, July 11, 2018

अमित शाह नीतीश कुमार से मिलेंगे

अमित साह नीतीश जी से मिलेंगे. अनिश्चितता का माहौल समाप्त हुआ. दोनों के बीच अब एक नहीं बल्कि दो मुलाक़ात होगी. हालाँकि पहली मुलाक़ात समूह में होगी. भाजपा के नेताओं के साथ. असली मुलाक़ात तो रात में होगी. भोजन पर.
भाजपा गठबंधन के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश जी की अमित शाह से यह पहली मुलाक़ात होगी. विधान सभा के पिछले चुनाव में नीतीश जी महागठबँधन की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरा थे. अमित साह उस चुनावी अभियान में बिहार के लोगों को चेता रहे थे. नीतीश अगर मुख्यमंत्री बनेंगे तो पाकिस्तान में दिवाली मानेगी. इसलिए पहली मुलाक़ात में पुरानी बात की याद की थोड़ी झेंप तो होगी.
लेकिन दोनों की बातचीत का असली पेंच तो बड़े भाई का दर्जा का है. बिहार में चेहरा किसका बड़ा होगा ! नीतीश कुमार का या नरेंद्र मोदी का ! बड़ा भाई कौन है, या किसका चेहरा बड़ा है, इसकी कसौटी क्या होगी ? स्वाभाविक है कि आगामी चुनावों में जो ज़्यादा सीट पर चुनाव लड़ेगा बिहार की जनता उसे ही बड़े भाई का दर्जा देगी. क्या भाजपा के लिए यह संभव है. सहज बुद्धि तो कहती है कि यह नामुमकिन है. तब नीतीश कुमार क्या रूख अपनायेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.

Saturday, July 7, 2018

नरेंद्र मोदी को Jio के विज्ञापन में दिखने के मायने।

बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर आपका ध्यान खींच रहा हूँ । 02 मिनट से अधिक का समय नही लगेगा, पढ़ जरूर लीजिएगा
क्योकि बात वोट की नही देशहित से जुड़ी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिलायंस "JIO " के विज्ञापन में दिखने के क्या मायने है ..देश का जनमानस यह धीरे-धीरे समझने लगा है । इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया के बनाए तिलिस्म के भरोसे नरेंद्र मोदी और भाजपा की यह एक सोची-समझी रणनीति थी कि इस देश की जनता को जब चाहे मूर्ख बनाया जा सकता है और इसी अतिआत्मविश्वास (over confidence) में नरेंद्र मोदी भारी गलती कर गए और अपने महिमामंडन के नशे में ये यह तक भूल गए कि उनकी प्राथमिकता लगातार घाटे में जा रहे BSNL को संभालना है ...न कि रिलायंस की 4G सिम बेचना ।
अंबानी और अडानी जैसे फिरकापरस्त उद्योगपतियों के पैसे पर अपनी राजनीति चमका कर खुद को भारत माँ का लाल बताने वाले देश के धुरंधर प्रधानमंत्री एक के बाद एक हर क्षेत्र, हर दिशा में वर्षों से कार्यरत सरकारी ढांचों और उपक्रमों को ध्वस्त कर अपनी भारत माँ को चंद उद्योगपतियों के हाथों बेचने पर आमादा है ।
टेलीकॉम सेक्टर के जानकार ये भी संभावना जताते हैं कि जल्द ही BSNL स्वयं के लिए स्पेक्ट्रम लेने की बजाय इसी रिलायंस के स्पेक्ट्रम से शेयरिंग प्राप्त करेगा । यानि कि अब BSNL का ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं रिलायंस से उधार लेकर चलेगीं ।
लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते है कि टेलीकॉम सेक्टर पहला ऐसा सेक्टर नहीं है जिसमें मोदी सरकार ने रिलायंस के प्रति अपनी गहरी स्वामिभक्ति का परिचय दिया हो । आपको बताते चलूं कि ऐसी कई करतूतें मोदी सरकार पिछले दो साल में एक बार नहीं कई बार कर चुकी है चाहे वो डिफेन्स में FDI लागू होने पर सरकार की तरफ से लाइज़निंग करने के लिए रिलायंस को नियुक्त करना हो या फिर मोदी के PM बनने के 4 महीने के भीतर ही रिलायंस के देश भर में बंद पड़े 19 हज़ार से ज़्यादा पेट्रोल पम्प्स का खुल जाना हो ।
ऐसा ही एक जिन्दा उदाहरण आपको मिलेगा ONGC के मामले में ।
पिछले वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत सरकार के एक अति महत्वपूर्ण उपक्रम तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) को दो बड़े झटके देते हुए उसे इस दयनीय हाल में ला दिया है जहाँ से शायद आने वाले दस सालों के अंदर ONGC का नामोनिशान ही मिट जाएगा ।
पहले झटके के तौर पर PM मोदी ने ONGC में निजी निवेश को मंज़ूरी दे दी और इसमें निवेश किया उनके आका मुकेश अंबानी ने ।
इसमें गौर करने वाली बात यह है कि ONGC भारत सरकार के लिए एक constant profit making body था, यानि उसकी वित्तीय स्थिति में ऐसी कहीं भी कोई समस्या नहीं जिसके चलते निजी निवेश से धन जुटाने की ज़रूरत पड़े । देखते ही देखते एक पुराने और लगातार लाभ देने वाले सरकार के इस उपक्रम से बिना कुछ किए कराए भारी मुनाफा कमाने लगी रिलायंस ! और बहाना ये बनाया गया कि इससे सरकारी खजाने को एकमुश्त 1600 करोड़ रूपए मिले ।
मित्रो यह 1600 करोड़ वो रकम है जिसका एक चौथाई यानि 400 करोड़ तो PM मोदी की एक साल की सुरक्षा में खर्च हो जाता है यानि सरकार का खजाना अचानक से कुबेर का खजाना हो गया हो ऐसी भी कोई बात नहीं थी ।
PM मोदी यहीं नहीं रुके, इस मंज़ूरी के बाद उन्होंने ONGC को और बड़ा तगड़ा झटका दिया और ONGC के सबसे बड़े सप्लाई हेड्स या फिर साधारण भाषा में यूं कहे कि सबसे बड़े ग्राहक में से एक भारतीय रेलवे को डीज़ल सप्लाई करने का काम ONGC से छीनकर मोदी ने अपने आका मुकेश अम्बानी की कंपनी "रिलायंस पेट्रोलियम " को दे दिया । अब ONGC दो तरह से पीटा जा रहा है, पहला जो काम उसके पास है उसमें से कमाए हुए पैसे में भी मुकेश अंबानी का हिस्सा दे और पुराने ग्राहकों को भी एक-एक करके रिलायन्स को सौंपा जा रहा है और ज़ाहिर है इसमें ONGC को तो कोई हिस्सा मिलना नहीं है ।
अब रही बात कि ये सारी जानकरियाँ सार्वजानिक क्यों नहीं होती ।
इस समय देश में हिंदी और गैरहिन्दी भाषी लगभग 90 से ज़्यादा चैनल्स है जिन्हें 24 hour broadcast की अनुमति प्राप्त है । ये 90 से ज़्यादा चैनल्स आज से तीन साल पहले तक 39 अलग-अलग मीडिया ग्रुप्स द्वारा संचालित किए जाते थे । आपको ये जानकर यह आश्चर्य होगा कि चैनल्स की संख्या वही है लेकिन संचालन करने वाले ग्रुप्स 39 से सिर्फ 21 रह गए है ।
ऐसा इसलिए क्योंकि इन तीन सालों में network18 नामक एक मीडिया ग्रुप ने 18 ग्रुप्स को खरीद कर अधिगृहित कर लिया । और इस network18 ग्रुप के मालिक का नाम है " मुकेश अंबानी"
यानि जो न्यूज़ चैनल्स पर हर शाम आपको गाय, गोबर, गौमूत्र, लवजिहाद, ISIS, पाकिस्तान, चीन और मंदिर मस्जिद दिखाया जाता है जिसे देखकर आपका खून खौल उठता है वो कोई जोश नहीं बल्कि एक तरह का ड्रग्स है जो आपकी भावनात्मक नसों में घोला जा रहा है ताकि आप के अन्दर अपने ही देश को लूटने वाले चंद गद्दार तथाकथित राष्ट्रवादियों और उद्योगपतियों को देखने और देखकर प्रतिकार करने की क्षमता देश के लोगों में न रह पाए ।
यूँ समझ लीजिए ईस्ट इंडिया कंपनी-II का जन्म इस बार भारत के अंदर ही हुआ है और इसे सुरक्षा देने वाली "खाकी चड्डी" पहनी पुलिस तो है ही ।
नोट : अगर मेरी बात पर विश्वास नही हो रहा है, तो किसी ONGC और रेलवे में ऊंचे पद पर जाब करने वाले से पूछ लीजिएगा,यकीन हो जाएगा।
यदि आपको लगता है कि देश को बचाना है तो 5 लोगो को शेयर जरुर करें .

Thursday, July 5, 2018

राष्ट्रीय जनता दल 22 वीं स्थापना दिवस

समाजवादी समर की उपज है हमारी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल,आपातकाल के आग में तपे लालू जी के तप का प्रतिफल है राजद।

राजद एक राजनीतिक पार्टी मात्र नही,न ही इस दल का उद्देश्य केवल चुनाव में बहुमत लेकर सरकार बनाना है,बल्कि यह तो 90 के दशक में बिहार में सामाजिक क्रांति की सूत्रधार है,यह दल उनकी आवाज है जिनकी आवाज आज तक अवरोधित थी,राजद समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति की अभिव्यक्ति है, राजद बिहार का वह दल है जिसने समाजवादी धारा को प्रवाहित करने का काम पूरे देश मे किया,राजद अकलियतों की आवाज है,राजद शोषितों की शान है,वंचितो का अधिकार है,सामंतीयो की शामत है,राजद एक दल नही एक विचारधारा है,जिसके आधार में लोहिया व जयप्रकाश के विचार स्थापित है।


यह पार्टी न होती तो  गरीब वंचित शोषित आज समाज की मुख्यधारा में न होता,पार्टी के 22 वीं स्थापना दिवस की सभी कार्यकर्ताओं को दिल से मुबारकबाद।
मुझे गर्व है मैं राजद का समर्थक हूँ।


                              बाबुल इनायत
                             9507860937
         सोशल मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार
Https://www.facebook.com/inayatbabul

Wednesday, July 4, 2018

5 Julay Rjd स्थापना दिवस राष्ट्रीय जनता दल

पार्टी विचारधारा:- राष्ट्रीय जनता दल सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के आधार पर समाज को विकसित करने की प्रतिबद्धता रखनेवाले लोगों और समुदायों की सामूहिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधि है. स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय जनता दल लगातार समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की आवाज के रूप में काम कर रहा है. राष्ट्रीय जनता दल समाजवादी राजनीति पर काम करने और प्रचार करने में विश्वास रखता है. पार्टी भूमिहीन श्रमिकों, किसानों, किसानों के अन्य कमजोर समूहों और प्रगतिशील लोगों के साथ ही समाज के अन्य वर्गों के एकताबद्ध नेटवर्क का विकास कर रही है. गांधीवादी मूल्यों से प्रेरणा लेकर समाजवादी नेताओं की महान परंपरा में राजद सांप्रदायिकता के खिलाफ पूरी प्रतिबद्धता के साथ खड़ा है. पार्टी का मानना है कि सत्याग्रह /अहिंसक प्रतिरोध सहित शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आन्दोलन का अधिकार लोगों का मौलिक अधिकार है.
एक राजनीतिक संगठन के रूप में राजद स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण जिन्हें लोग जेपी या लोकनायक के रूप में आदर और प्यार से याद करते हैं, के मार्गदर्शक विचारों का पालन करता है. महान समाजवादी दूरदर्शी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नक्शेकदम पर चलते हुए, राजद का दृढ़ विश्वास है कि ‘सार्वभौम, समाजवादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य’ के संवैधानिक आदर्शों को वास्तविक अर्थों में धरातल पर उतारने के लिए जमीनी स्तर पर सतर्कता और संघर्ष की आवश्यकता होती है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की विचारोत्तेजक पंक्तियों “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” और “करो या मरो” का शानदार ढंग से किया गया पाठ राजद के लिए गरीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और सामाजिक रूप से कमजोर समाज के अन्य वर्ग के लोगों के सामाजिक उत्थान के संघर्ष के लिए एक प्रेरणा है.
राजद एक आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टिकोण के साथ एक सक्रिय राजनीतिक दल के रूप में उभरा है और इसका इतिहास अब तक धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और सभी के लिए एक समावेशी विकास के सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है.

                                        बाबुल इनायत
                                       9507860937
                   सोशल मीडिया प्रभारी, राजद अररिया बिहार
                                       
Babulinayat

क्या कांग्रेस के दबाव में तेजस्वी को महागठबंधन में नीतीश को दोबारा एंट्री देनी चाहिए




जब कांग्रेस के शासनकाल में 1989 का भयावह दंगा हुआ, तो लालू प्रसाद ने अलौली (खगड़िया) की एक सभा में कहा था कि कांग्रेस को उखाड़ कर बंगाल की खाड़ी में फेंक देंगे। यह उस वक़्त की कांग्रेस की गाभिन नीति के विरुद्ध एकदम ठीक तेवर था। आज सियासी हालात कुछ और हैं। कांग्रेस की जगह पर बीजेपी को रख दीजिए। लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिए किसी भी विश्लेषक को लालू अपने उरूज पर तभी तक थे जब तक वो कांग्रेस के आगे नतमस्तक नहीं हुए और अपनी शर्तों पर सियासत करते रहे।
इधर पिछले दो महीने से यह सुगबुगाहट है कि कांग्रेस सरपंच बनने की अपनी ख़ानदानी आदत और पुश्तैनी बीमारी से लाचार होकर राजद पर धीरे-धीरे यह दबाव बना रही है कि आगामी चुनाव में वो नीतीश की पिछली बेहयाई को भूलकर उन्हें साथ ले ले। ज्योंहि तेजस्वी ने दूरगामी राजनीति के लिहाज से यह आत्मघाती क़दम उठाया कि न सिर्फ़ उनके परंपरागत वोटर्स में ग़लत संदेश जाएगा, बल्कि उनका मनोबल भी चकनाचूर होगा। किसी तरह के दबाव के आगे नहीं झुकने वाले ही बेहतर निगोशिएट कर पाते हैं। अभी से अगर तेजस्वी किसी स्वनामधन्य सलाहकार के चक्कर में पड़कर उलटपुलट डिसीजन लिए, तो उन पर न सिर्फ़ “एकात्म कुर्सीवाद” (अजित अंजुम का ईज़ाद किया हुआ टर्म है) का आरोप लगेगा, बल्कि बड़ी लगन से बेहद कम अवधि में अर्जित अपनी विश्वसनीयता भी खो देंगे। उत्थान मुश्किल होता है, पतन की राह तो हमेशा से आसान रही है। ख़याल रहे कि कांग्रेस का इतिहास ही है कि वो कभी किसी क्षेत्रीय दल या नेता को फलते-फूलते नहीं देखना चाहती। ठीक है कि अभी भाजपा ने पूरे देश में कहर बरपाया हुआ है, मगर अपने वुजूद को कांग्रेस के इशारे पर कहीं किसी में विलीन कर देना सिवाय मूर्खतापूर्ण डिसीजन के और कुछ नहीं कहा जाएगा।
बहुत कम लोगों को पता है कि पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक बीच में लालूजी को एक बड़े पत्रकार ने यूं ही बातचीत में कहा कि बिल्कुल सही वक़्त पर देशहित में सही फ़ैसला आपने लिया, सरकार तो आपके गठबंधन की ही बनने जा रही है, कहीं कोई शकोसुबहा नहीं है; पर स्पीकर का पद मत छोड़िएगा। लेकिन, लालूजी ने उस बात को बहुत हल्के में लिया कि हां, वो कोई मसला नहीं है, 20 से पहले कहां जाएगा। इतना भरोसा था उन्हें नीतीश जी पर।
अब मुझे नहीं मालूम कि किस तज़ुर्बे के आधार पर दिलीप मंडल जी नीतीश की फिर से गठबंधन में एंट्री की वकालत कर रहे हैं। कम-से-कम पिछले बीस वर्षों से तो नीतीश जी की राजनीति के पैटर्न, स्टाइल और वर्क कल्चर को फॉलो कर ही रहा हूँ और कुछ पिताजी की सियासी सक्रियता की वजह से भी अंदर की बात पता चल जाती थी। इस आदमी के बारे में यूं ही हवा में नहीं कह दिया जाता कि कभियो इ पलट के काट ले सकता है। इतिहासे है इनका। अब मैं आपके सामने दिलीप जी के प्रस्ताव को यहाँ एज इट इज़ रख दे रहा हूँ, “मेरी राय है कि नीतीश को गठबंधन में ले लेना चाहिए. बाकी बाद में देखना चाहिए कि क्या करना है. नीतीश को सीट कम देनी चाहिए. बीजेपी भी 8 सीट ही दे रही है. तेजस्वी भी इतनी ही दे दें.”
इस नहले पे दहला मार दिया है या यूं कहें कि अच्छा मज़ाक किया है महेंद्र यादव जी ने, “नीतीश को अगर आरजेडी ने फिर साथ ले लिया तो शरद यादव का क्या होगा.. नीतीश साथ आना चाहते हैं तो उनके सामने कुछ शर्तें रखी जानी चाहिए- 1. नीतीश पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ें और शरद यादव को दें। 2. आरसीपी जैसों से राज्यसभा सीट खाली कराके शरद यादव और अली अनवर को दें। 3. मुख्यमंत्री पद छोड़ें, और शरद यादव अनुमति दें तो उपमुख्यमंत्री बनें। 4. स्पीकर आरजेडी का बनवाएं। 5. लोकसभा चुनाव में सीटों का बँटवारा लालू जी और शरद जी करें, और स्वाभाविक रूप से जेडीयू में टिकट शरद यादव बांटें।”
ऐसा है कि बिहार की राजनीति सर्कस नहीं है और यहाँ की जनता कोई फुटबॉल नहीं कि जब जिसको मन हो आके किक लगा दे कभी सेंटर से कभी फॉरवर्ड से। जैसे बड़ी चालाकी से महागठबंधन में सटकर जीत के नीतीश भाग गए अपने पुराने यार के पास, वैसे ही लोकसभा की सीटें भी सटकर जीत लेंगे और फिर मोदी-शाह अपने डंडे से इनको हांक के अपने टेंट में लेके चले जाएंगे। हां, इस पूरे खेल में सेल्फ गोल करने का किसी का मन हो तो कौन क्या करे! यहाँ की जनता का न्यायबोध ज़बरदस्त है, कोई ख़ुद को ढेर क़ाबिल समझने लगता है और उसे फॉर ग्रांटेड लेता है कि जैसे मन होगा वैसे हांक लेंगे या जोत देंगे, तो उसे बढ़िया से ठिकाने भी लगा देती है। बाक़ी,
जम्हूरियत में कम-से-कम इतनी आज़ादी तो है
के हमको ख़ुद करना है अपने क़ातिलों का इंतख़ाब। (शायद जिगर या कैफ़ी)
मोदी-शाह वाले एनडीए में अपनी डांवाडोल स्थिति को भांपते हुए, 19 में फिनिश होने के खतरे को आंक कर बिहार में मज़बूत विपक्ष को देख ललचाए नीतीश कुमार का कल बयान आया कि नोटबन्दी से सिर्फ़ ग़रीबों का नुकसान हुआ। आगामी लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर होता नुकसान देख जनाब का यह बयान आया है। नीतीश इतने बड़े महामूर्ख तो हैं नहीं कि उन्हें तब समझ में नहीं आया जब समर्थन कर रहे थे। गांव में लोग कहते हैं कि ढेर क़ाबिल आदमी तीन जगह माखता है। दम धरिए, अभी तो इनकी दुर्गति शुरू हुई है! बहुत कुछ भुगतना बाक़ी है। आरएसएस अभी इनका नाक रगड़वाए बगैर इन्हें छोड़ेगा नहीं।
इसके पहले 15 मार्च को भी दिलीप जी ने नीतीश कुमार के प्रति रहम बरतने का मंतव्य प्रकट किया था। तब भी दिलीप मंडल जी का कुछ इसी से मिलता-जुलता प्रस्ताव था- “नीतीश कुमार पल्टी मारें, तो तेजस्वी यादव को दिल बड़ा कर लेना चाहिए”। मैं तेजस्वी को इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज़ करने का अयाचित परामर्श देने का दुस्साहस करता हूँ। हज़ार बार कह चुका हूँ कि लालू-विरोध ही नीतीश जी की एकमात्र युएसपी है, वो लालू प्रसाद का विरोध करना छोड़ दें, तो उनके पास अपना बचेगा क्या सिवाय सिफ़र के?
अलौली (खगड़िया) में एक जगह है हरिपुर, कुर्मी बाहुल क्षेत्र। नीतीश जी को तब भी वहाँ प्रचार के लिए बुलाया जाता था जब अविभाजित जनता दल था और तब भी जब वो जनता दल (जॉर्ज) को समता पार्टी का रूप दे चुके थे।
एक बार लालू प्रसाद के ख़िलाफ़ बोलते-बोलते वो बहक गए यह सोचते हुए कि सजातीय लोगों का इलाक़ा है, यहाँ कौन क्या कहेगा। उन्होंने कहा, “लालू प्रसाद मुंज हैं जिनकी जड़ में मट्ठा डालके हम तहसनहस कर देंगे”। इतना सुनना था कि लालूजी के दल के कुर्मी जाति, पासवान जाति और यादव जाति (यादव बहुत कम संख्या में हैं उस इलाक़े में) से संबद्ध लोग ईंटा-पत्थर मंच पर फेंकना चालू कर दिए। अपना ऊबाऊ-झेलाऊ भाषण बीच में ही छोड़छाड़कर उन्हें भागना पड़ा, बमुश्किल उन्हें हैलीपैड तक पहुंचाया गया।
इस प्रसंग का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ की नीतीश कुमार के मन में लालू प्रसाद के लिए किस कदर ज़हर घुला हुआ है। इसलिए, सियासी रूप से कमज़ोर होने पर नीतीश जी की रोनी सूरत पर मत जाइए। ज़रा सा वो ताक़तवर होंगे कि भस्मासुर की तरह आपही के माथे पर हाथ धरने के लिए परपरिया रौदा ( चिलचिलाती धूप) में आपको दौड़ते रहेंगे। इसलिए,सावधान! अब सियासत भावुकता से नहीं चलेगी कि नीतीश के पास भावना है ही नहीं। व्यक्तिगत जीवन में भी और सामाजिक-राजनैतिक जीवन में भी भयंकर रूप से क्रूर आदमी हैं। कैसे भूल जाते हैं लोग कि उपेंद्र कुशवाहा की वयोवृद्ध मां समेत पूरे परिवार को सामान सहित रात में आवास से फेंकवा दिया, पासवान को तो नेस्तनाबूद करके ही छोड़ दिया, सतीश कुमार, दिग्विजय और जॉर्ज को ख़ून के आंसू रुला दिए, उदयनारायण और जीतनराम को लगातार ज़लील किया। महागठबंधन बनने से पहले ख़ुद लालू की पार्टी को चकनाचूर कर देने से बाज नहीं आए।
नीतीश ख़त्म हो रहे हों, तो एकदम ख़त्म हो जाने दीजिए। वह व्यक्ति न दया का पात्र है न कोई सहानुभूति डिज़र्व करता है। ऐसे शातिर-धूर्त-चालू-तिकड़मी लोगों को दूध-लावा नहीं चढ़ाया करते, नहीं तो काटने पर ट्वीटर पर मत कोस कर ट्रेंड कराया कीजिए कि नीतीश ट्वायलेट चोर है। उस आदमी को खाद-पानी देके पालिए-पोसिएगा तो एक दिन फिर डंसेगा ही। लालूजी की सब बात भूल जाइए, बस उनकी एक पसंदीदा लोकोक्ति याद रखिए:

जब कांग्रेस के शासनकाल में 1989 का भयावह दंगा हुआ, तो लालू प्रसाद ने अलौली (खगड़िया) की एक सभा में कहा था कि कांग्रेस को उखाड़ कर बंगाल की खाड़ी में फेंक देंगे। यह उस वक़्त की कांग्रेस की गाभिन नीति के विरुद्ध एकदम ठीक तेवर था। आज सियासी हालात कुछ और हैं। कांग्रेस की जगह पर बीजेपी को रख दीजिए। लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिए किसी भी विश्लेषक को लालू अपने उरूज पर तभी तक थे जब तक वो कांग्रेस के आगे नतमस्तक नहीं हुए और अपनी शर्तों पर सियासत करते रहे।
इधर पिछले दो महीने से यह सुगबुगाहट है कि कांग्रेस सरपंच बनने की अपनी ख़ानदानी आदत और पुश्तैनी बीमारी से लाचार होकर राजद पर धीरे-धीरे यह दबाव बना रही है कि आगामी चुनाव में वो नीतीश की पिछली बेहयाई को भूलकर उन्हें साथ ले ले। ज्योंहि तेजस्वी ने दूरगामी राजनीति के लिहाज से यह आत्मघाती क़दम उठाया कि न सिर्फ़ उनके परंपरागत वोटर्स में ग़लत संदेश जाएगा, बल्कि उनका मनोबल भी चकनाचूर होगा। किसी तरह के दबाव के आगे नहीं झुकने वाले ही बेहतर निगोशिएट कर पाते हैं। अभी से अगर तेजस्वी किसी स्वनामधन्य सलाहकार के चक्कर में पड़कर उलटपुलट डिसीजन लिए, तो उन पर न सिर्फ़ “एकात्म कुर्सीवाद” (अजित अंजुम का ईज़ाद किया हुआ टर्म है) का आरोप लगेगा, बल्कि बड़ी लगन से बेहद कम अवधि में अर्जित अपनी विश्वसनीयता भी खो देंगे। उत्थान मुश्किल होता है, पतन की राह तो हमेशा से आसान रही है। ख़याल रहे कि कांग्रेस का इतिहास ही है कि वो कभी किसी क्षेत्रीय दल या नेता को फलते-फूलते नहीं देखना चाहती। ठीक है कि अभी भाजपा ने पूरे देश में कहर बरपाया हुआ है, मगर अपने वुजूद को कांग्रेस के इशारे पर कहीं किसी में विलीन कर देना सिवाय मूर्खतापूर्ण डिसीजन के और कुछ नहीं कहा जाएगा।
बहुत कम लोगों को पता है कि पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक बीच में लालूजी को एक बड़े पत्रकार ने यूं ही बातचीत में कहा कि बिल्कुल सही वक़्त पर देशहित में सही फ़ैसला आपने लिया, सरकार तो आपके गठबंधन की ही बनने जा रही है, कहीं कोई शकोसुबहा नहीं है; पर स्पीकर का पद मत छोड़िएगा। लेकिन, लालूजी ने उस बात को बहुत हल्के में लिया कि हां, वो कोई मसला नहीं है, 20 से पहले कहां जाएगा। इतना भरोसा था उन्हें नीतीश जी पर।
अब मुझे नहीं मालूम कि किस तज़ुर्बे के आधार पर दिलीप मंडल जी नीतीश की फिर से गठबंधन में एंट्री की वकालत कर रहे हैं। कम-से-कम पिछले बीस वर्षों से तो नीतीश जी की राजनीति के पैटर्न, स्टाइल और वर्क कल्चर को फॉलो कर ही रहा हूँ और कुछ पिताजी की सियासी सक्रियता की वजह से भी अंदर की बात पता चल जाती थी। इस आदमी के बारे में यूं ही हवा में नहीं कह दिया जाता कि कभियो इ पलट के काट ले सकता है। इतिहासे है इनका। अब मैं आपके सामने दिलीप जी के प्रस्ताव को यहाँ एज इट इज़ रख दे रहा हूँ, “मेरी राय है कि नीतीश को गठबंधन में ले लेना चाहिए. बाकी बाद में देखना चाहिए कि क्या करना है. नीतीश को सीट कम देनी चाहिए. बीजेपी भी 8 सीट ही दे रही है. तेजस्वी भी इतनी ही दे दें.”
इस नहले पे दहला मार दिया है या यूं कहें कि अच्छा मज़ाक किया है महेंद्र यादव जी ने, “नीतीश को अगर आरजेडी ने फिर साथ ले लिया तो शरद यादव का क्या होगा.. नीतीश साथ आना चाहते हैं तो उनके सामने कुछ शर्तें रखी जानी चाहिए- 1. नीतीश पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ें और शरद यादव को दें। 2. आरसीपी जैसों से राज्यसभा सीट खाली कराके शरद यादव और अली अनवर को दें। 3. मुख्यमंत्री पद छोड़ें, और शरद यादव अनुमति दें तो उपमुख्यमंत्री बनें। 4. स्पीकर आरजेडी का बनवाएं। 5. लोकसभा चुनाव में सीटों का बँटवारा लालू जी और शरद जी करें, और स्वाभाविक रूप से जेडीयू में टिकट शरद यादव बांटें।”
ऐसा है कि बिहार की राजनीति सर्कस नहीं है और यहाँ की जनता कोई फुटबॉल नहीं कि जब जिसको मन हो आके किक लगा दे कभी सेंटर से कभी फॉरवर्ड से। जैसे बड़ी चालाकी से महागठबंधन में सटकर जीत के नीतीश भाग गए अपने पुराने यार के पास, वैसे ही लोकसभा की सीटें भी सटकर जीत लेंगे और फिर मोदी-शाह अपने डंडे से इनको हांक के अपने टेंट में लेके चले जाएंगे। हां, इस पूरे खेल में सेल्फ गोल करने का किसी का मन हो तो कौन क्या करे! यहाँ की जनता का न्यायबोध ज़बरदस्त है, कोई ख़ुद को ढेर क़ाबिल समझने लगता है और उसे फॉर ग्रांटेड लेता है कि जैसे मन होगा वैसे हांक लेंगे या जोत देंगे, तो उसे बढ़िया से ठिकाने भी लगा देती है। बाक़ी,
जम्हूरियत में कम-से-कम इतनी आज़ादी तो है
के हमको ख़ुद करना है अपने क़ातिलों का इंतख़ाब। (शायद जिगर या कैफ़ी)
मोदी-शाह वाले एनडीए में अपनी डांवाडोल स्थिति को भांपते हुए, 19 में फिनिश होने के खतरे को आंक कर बिहार में मज़बूत विपक्ष को देख ललचाए नीतीश कुमार का कल बयान आया कि नोटबन्दी से सिर्फ़ ग़रीबों का नुकसान हुआ। आगामी लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर होता नुकसान देख जनाब का यह बयान आया है। नीतीश इतने बड़े महामूर्ख तो हैं नहीं कि उन्हें तब समझ में नहीं आया जब समर्थन कर रहे थे। गांव में लोग कहते हैं कि ढेर क़ाबिल आदमी तीन जगह माखता है। दम धरिए, अभी तो इनकी दुर्गति शुरू हुई है! बहुत कुछ भुगतना बाक़ी है। आरएसएस अभी इनका नाक रगड़वाए बगैर इन्हें छोड़ेगा नहीं।
इसके पहले 15 मार्च को भी दिलीप जी ने नीतीश कुमार के प्रति रहम बरतने का मंतव्य प्रकट किया था। तब भी दिलीप मंडल जी का कुछ इसी से मिलता-जुलता प्रस्ताव था- “नीतीश कुमार पल्टी मारें, तो तेजस्वी यादव को दिल बड़ा कर लेना चाहिए”। मैं तेजस्वी को इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज़ करने का अयाचित परामर्श देने का दुस्साहस करता हूँ। हज़ार बार कह चुका हूँ कि लालू-विरोध ही नीतीश जी की एकमात्र युएसपी है, वो लालू प्रसाद का विरोध करना छोड़ दें, तो उनके पास अपना बचेगा क्या सिवाय सिफ़र के?
अलौली (खगड़िया) में एक जगह है हरिपुर, कुर्मी बाहुल क्षेत्र। नीतीश जी को तब भी वहाँ प्रचार के लिए बुलाया जाता था जब अविभाजित जनता दल था और तब भी जब वो जनता दल (जॉर्ज) को समता पार्टी का रूप दे चुके थे।
एक बार लालू प्रसाद के ख़िलाफ़ बोलते-बोलते वो बहक गए यह सोचते हुए कि सजातीय लोगों का इलाक़ा है, यहाँ कौन क्या कहेगा। उन्होंने कहा, “लालू प्रसाद मुंज हैं जिनकी जड़ में मट्ठा डालके हम तहसनहस कर देंगे”। इतना सुनना था कि लालूजी के दल के कुर्मी जाति, पासवान जाति और यादव जाति (यादव बहुत कम संख्या में हैं उस इलाक़े में) से संबद्ध लोग ईंटा-पत्थर मंच पर फेंकना चालू कर दिए। अपना ऊबाऊ-झेलाऊ भाषण बीच में ही छोड़छाड़कर उन्हें भागना पड़ा, बमुश्किल उन्हें हैलीपैड तक पहुंचाया गया।
इस प्रसंग का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ की नीतीश कुमार के मन में लालू प्रसाद के लिए किस कदर ज़हर घुला हुआ है। इसलिए, सियासी रूप से कमज़ोर होने पर नीतीश जी की रोनी सूरत पर मत जाइए। ज़रा सा वो ताक़तवर होंगे कि भस्मासुर की तरह आपही के माथे पर हाथ धरने के लिए परपरिया रौदा ( चिलचिलाती धूप) में आपको दौड़ते रहेंगे। इसलिए,सावधान! अब सियासत भावुकता से नहीं चलेगी कि नीतीश के पास भावना है ही नहीं। व्यक्तिगत जीवन में भी और सामाजिक-राजनैतिक जीवन में भी भयंकर रूप से क्रूर आदमी हैं। कैसे भूल जाते हैं लोग कि उपेंद्र कुशवाहा की वयोवृद्ध मां समेत पूरे परिवार को सामान सहित रात में आवास से फेंकवा दिया, पासवान को तो नेस्तनाबूद करके ही छोड़ दिया, सतीश कुमार, दिग्विजय और जॉर्ज को ख़ून के आंसू रुला दिए, उदयनारायण और जीतनराम को लगातार ज़लील किया। महागठबंधन बनने से पहले ख़ुद लालू की पार्टी को चकनाचूर कर देने से बाज नहीं आए।

नीतीश ख़त्म हो रहे हों, तो एकदम ख़त्म हो जाने दीजिए। वह व्यक्ति न दया का पात्र है न कोई सहानुभूति डिज़र्व करता है। ऐसे शातिर-धूर्त-चालू-तिकड़मी लोगों को दूध-लावा नहीं चढ़ाया करते, नहीं तो काटने पर ट्वीटर पर मत कोस कर ट्रेंड कराया कीजिए कि नीतीश ट्वायलेट चोर है। उस आदमी को खाद-पानी देके पालिए-पोसिएगा तो एक दिन फिर डंसेगा ही। लालूजी की सब बात भूल जाइए, बस उनकी एक पसंदीदा लोकोक्ति याद रखिए:

5 जुलाई राष्ट्रीय जनता दल स्थापना दिवस

5 जुलाई को राजद 22 वीं स्थापना दिवस समारोह का आयोजन राजद प्रदेश कार्यालय में हो रहा , जिसमें हमारे सभी राष्ट्रीय नेता , सभी प्रदेश पदाधिकारी भाग ले रहे , अतः जिला राजद अररिया के सभी पदाधिकारी , प्रखंड अध्यक्ष , राष्ट्रीय जनता दल के अनुषांगिक शाखा जैसे युवा राजद , छात्र राजद ... के जिला अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारी 5 जुलाई को प्रदेश कार्यालय में अधिकाधिक संख्या में पहुंचकर जिले की जोरदार उपस्थिति सुनिश्चित करें यही साग्रह निवेदन

राजद 22 वीं स्थापना दिवस 5 जुलाई


राष्ट्रीय जनता दल की 22वीं स्थापना दिवस 5 जुलाई 2018 को दिन के 11 बजे राजद प्रदेश कार्यालय पटना में आयोजित किया गया है।
जिसमे राजद अररिया  जिला के सभी प्रकोष्ठ के सभी पदाधिकारी एवं सभी प्रखण्ड के सभी प्रकोष्ठ के सभी पदाधिकारी आमंत्रित हैं।

                                     बाबुल इनायत
                                     9507860937
                                    Babulinayat


Swami Vivekananda Birthday


अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहराने वाले युगपुरूष स्वामी विवेकानन्द जी के पुण्यतिथि पर,उन्हें शत-शत नमन व विनम्र श्रद्धांजलि!!
SwamiVivekananda


Monday, July 2, 2018

अपनी जगह यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा-संघ से आते हैं! पर वह इस वक्त भारत के प्रधानमंत्री हैं। हम सबके प्रधानमंत्री! वह जब कभी सार्वजनिक मंच से कोई वक्तव्य देते हैं, वह प्रधानमंत्री का आधिकारिक बयान होता है! इसलिए माननीय प्रधानमंत्री को अपने दफ्तर में अच्छे, समझदार और पढ़े-लिखे भाषण-लेखक( स्पीच राइटर) रखने चाहिए! ऐसा लगता है कि उनके स्पीच राइटर भी 'संघ-परिवार' से आ गये हैं! ज्ञात-इतिहास की तारीखें और महापुरूषों के कार्यकाल तक बदल दे रहे हैं!
ऐसे 'स्पीच-राइटर' हमारे प्रधानमंत्री से ग़लत-सलत बोलवा देते हैं! दिल्ली से दावोस, पटना से मगहर, कई बार ऐसे 'भाषण-ब्लंडर' हो चुके हैं! ऐसी ग़लत-सलत तकरीरों का भाजपा के बड़बोले और झगड़ालू टीवी प्रवक्ता भी बचाव नहीं कर पाते! दो तीन दिन पहले भी यही हुआ। एक प्रमुख चैनल पर प्रधानमंत्री के मगहर भाषण पर चर्चा हो रही थी। पैनल में एक बड़बोले भाजपा प्रवक्ता भी मौजूद थे। जब सवाल उठा कि प्रधानमंत्री जी ने 11-12वीं सदी के गुरु गोरखनाथ और 15वीं सदी के कबीर के बीच मगहर में आध्यात्मिक चर्चा कैसे करा दी, भाई!
उस वक्त, भाजपा प्रवक्ता चाहकर भी कुछ बोल नहीं सका! मजे की बात है, प्रधानमंत्री जी ने गुरु गोरखनाथ और संत कबीर के समकालीन होने की बात ऐसे मंच से की, जहां गोरखनाथ के नाम से विख्यात गोरखपुर के मठ के मठाधीश और यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी भी मौजूद थे! बेचारे, क्या कहते प्रधानमंत्री को!
इसलिए प्रधानमंत्री को मेरी बात का बुरा न मानते हुए अपने 'स्पीच-राइटर' फौरन बदल देना चाहिए! यह बात मैं देशहित में कह रहा हूं! और हां, संघ परिवार के बाहर के लोगों को स्पीच राइटर बनाया जाना चाहिए! आप, हम सबके प्रधानमंत्री हैं, सर!

नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...