Thursday, May 31, 2018

4 लोकसभा, 10 विधानसभा सीटों के उपचुनावों का FINAL RESULT


4 लोकसभा, 10 विधानसभा सीटों के उपचुनावों का FINAL RESULT
उपचुनाव के नतीजे घोषित
देश के 10 राज्यों की 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे गुरुवार को घोषित हुए. इन उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी सिर्फ दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाई, जबकि कई जगह उसे मुंह की खानी पड़ी.
इन सीटों में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट, महाराष्ट्र की पालघर और उत्तर प्रदेश की ही नूरपुर विधानसभा सीट थीं. इसमें कैराना और नूरपुर में एकजुट विपक्ष के आगे बीजेपी ने घुटने टेक दिए. इन 14 सीटों के अलावा महाराष्ट्र की एक सीट पर निर्विरोध रूप से कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. इन उपचुनाव नतीजों को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है.
सभी 14 सीटों पर हुए उपचुनाव में किसने जीत दर्ज की है, यहां पढ़ें....
लोकसभा सीटें...
1. उत्तर प्रदेश: बहुचर्चित कैराना लोकसभा सीट पर रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने बड़ी जीत हासिल की है. तबस्सुम को 481182 वोट मिले. वहीं, बीजेपी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को 436564 वोट मिले हैं. तबस्सुम ने 44618 वोट के अंतर से जीत दर्ज की है. रालोद उम्मीदवार तबस्सुम को सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष का समर्थन प्राप्त था.
2. महाराष्ट्र : गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट पर एनसीपी उम्‍मीदवार मधुकर कुकड़े ने जीत दर्ज की है. मधुकर को 442213 वोट मिले हैं. वहीं, बीजेपी के उम्‍मीदवार हेमंत पटले को 384116  वोट मि‍ले हैं. एनसीपी ने 48097 वोटों के अंतर से जीत हासिल की है.
3. महाराष्ट्र : पालघर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला अपनी ही साथी शिवसेना से था. यहां पर बीजेपी के उम्मीदवार राजेंद्र गावित ने करीब 29 हज़ार वोटों से जीत दर्ज की. शिवसेना ने भाजपा के दिवंगत सांसद चिंतामण वनगा के बेटे श्रीनिवास वनगा को अपना उम्मीदवार बनाया था.
4. नगालैंड : नगालैंड सीट पर बीजेपी समर्थ‍ित NDPP के उम्‍मीदवार तोखेहो येपथेमी ने जीत दर्ज की. तोखेहो येपथेमी को 594205 वोट मिले, कांग्रेस समर्थ‍ित NPF के उम्‍मीदवार सी अपोक जमीर को  420459 वोट मिले हैं. तोखेहो येपथेमी ने 173746 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की.  
विधानसभा सीटें...
1. उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा उम्मीदवार नईमुल हसन ने बीजेपी उम्मीदवार अवनि सिंह को 6211 मतों से मात दी है. जबकि ये सीट बीजेपी की सबसे मजबूत सीट मानी जाती थी, वहीं, सपा का इस सीट पर पहली बार खाता खुला है.
2. बिहार : यहां की जोकीहाट विधानसभा सीट पर राजद उम्मीदवार शाहनवाज आलम ने बड़ी जीत हासिल की है. शाहनवाज ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी जेडीयू के मुर्शीद आलम को 41,224 मतों के अंतर से हराया. शाहनवाज को 81,240 जबकि मुर्शीद को 40,016 मत हासिल हुए.
3. उत्तराखंड : थराली विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मुन्नी देवी ने 1872 वोटों से जीत दर्ज की. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जीतराम को मात दी.
4. केरल : केरल के चेंगन्नुर सीट पर CPM उम्मीदवार एस चेरियां ने 20956 वोटों से जीत दर्ज की. यहां CPM को 67303 वोट, कांग्रेस को 46347 वोट और BJP को 35270 वोट मिले.
5. झारखंड : यहां की सिल्ली विधानसभा सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सीमा महतो ने बड़ी जीत दर्ज की. उन्होंने एजेएसयू के सुदेश महतो को मात दी.
6. पंजाब : शाहकोट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के हरदेव सिंह लाडी ने बाजी मारी. कांग्रेस के हरदेव सिंह लाडी ने अकाली दल के नायब सिंह कोहाड़ को 38802 वोटों से हराया.
7. पश्चिम बंगाल: महेश्तला विधानसभा सीट पर TMC ने 62896 वोटों से जीत दर्ज की. यहां TMC को 104818 वोट, बीजेपी को 41993 वोट और सीपीएम को 30316 वोट मिले. टीएमसी के दुलाल दास ने बीजेपी के सुजीत घोष को मात दी.
8. मेघालय: अंपाती सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार मियानी डी शिरा ने 3191 वोटों से जीत दर्ज की. मियानी ने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के उम्मीदवार जी मोमीन को मात दी.
9. झारखंड : गोमिया विधानसभा क्षेत्र पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बड़ी जीत दर्ज की है. गोमिया सीट पर जेएमएम उम्मीदवार बबीता देवी ने आजसू के उम्मीदवार को करीब 2000 मतों से हराया.
10. कर्नाटक : राजराजेश्वरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार मुनिरत्ना ने 25,492 वोटों से जीत दर्ज की है. यहां कांग्रेस को 108064, बीजेपी को 82572 और जेडीएस को 60360 वोट मिले. उन्होंने बीजेपी के मुनिराजू गौड़ा को मात दी है.
11. महाराष्ट्र की इस सीट पर निर्विरोध जीती कांग्रेस
महाराष्ट्र की पलूस-कडेगाव विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विश्‍वजीत कदम ने निर्विरोध जीत हासिल कर ली है. यह सीट विश्‍वजीत के पिता और वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता पतंगराव कदम के निधन से खाली हुई थी. यहां पर पहले बीजेपी ने कांग्रेस प्रत्याशी विश्वजीत कदम के खिलाफ संग्राम सिंह देशमुख को उतारा था, लेकिन आखिरी वक्त उन्होंने नामांकन वापस ले लिया.


बाबुल इनायत
9507860937
सोशल मीडिया प्रभारी,राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार


Tuesday, May 29, 2018

क्या कांग्रेस के दबाव में तेजस्वी को महागठबंधन में नीतीश को दोबारा एंट्री देनी चाहिए?

इधर पिछले दो महीने से यह सुगबुगाहट है कि कांग्रेस सरपंच बनने की अपनी ख़ानदानी आदत और पुश्तैनी बीमारी से लाचार होकर राजद पर धीरे-धीरे यह दबाव बना रही है कि आगामी चुनाव में वो नीतीश की पिछली बेहयाई को भूलकर उन्हें साथ ले ले। ज्योंहि तेजस्वी ने दूरगामी राजनीति के लिहाज से यह आत्मघाती क़दम उठाया कि न सिर्फ़ उनके परंपरागत वोटर्स में ग़लत संदेश जाएगा, बल्कि उनका मनोबल भी चकनाचूर होगा। किसी तरह के दबाव के आगे नहीं झुकने वाले ही बेहतर निगोशिएट कर पाते हैं। अभी से अगर तेजस्वी किसी स्वनामधन्य सलाहकार के चक्कर में पड़कर उलटपुलट डिसीजन लिए, तो उन पर न सिर्फ़ “एकात्म कुर्सीवाद” (अजित अंजुम का ईज़ाद किया हुआ टर्म है) का आरोप लगेगा, बल्कि बड़ी लगन से बेहद कम अवधि में अर्जित अपनी विश्वसनीयता भी खो देंगे। उत्थान मुश्किल होता है, पतन की राह तो हमेशा से आसान रही है। ख़याल रहे कि कांग्रेस का इतिहास ही है कि वो कभी किसी क्षेत्रीय दल या नेता को फलते-फूलते नहीं देखना चाहती। ठीक है कि अभी भाजपा ने पूरे देश में कहर बरपाया हुआ है, मगर अपने वुजूद को कांग्रेस के इशारे पर कहीं किसी में विलीन कर देना सिवाय मूर्खतापूर्ण डिसीजन के और कुछ नहीं कहा जाएगा।
बहुत कम लोगों को पता है कि पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक बीच में लालूजी को एक बड़े पत्रकार ने यूं ही बातचीत में कहा कि बिल्कुल सही वक़्त पर देशहित में सही फ़ैसला आपने लिया, सरकार तो आपके गठबंधन की ही बनने जा रही है, कहीं कोई शकोसुबहा नहीं है; पर स्पीकर का पद मत छोड़िएगा। लेकिन, लालूजी ने उस बात को बहुत हल्के में लिया कि हां, वो कोई मसला नहीं है, 20 से पहले कहां जाएगा। इतना भरोसा था उन्हें नीतीश जी पर।
अब मुझे नहीं मालूम कि किस तज़ुर्बे के आधार पर दिलीप मंडल जी नीतीश की फिर से गठबंधन में एंट्री की वकालत कर रहे हैं। कम-से-कम पिछले बीस वर्षों से तो नीतीश जी की राजनीति के पैटर्न, स्टाइल और वर्क कल्चर को फॉलो कर ही रहा हूँ और कुछ पिताजी की सियासी सक्रियता की वजह से भी अंदर की बात पता चल जाती थी। इस आदमी के बारे में यूं ही हवा में नहीं कह दिया जाता कि कभियो इ पलट के काट ले सकता है। इतिहासे है इनका। अब मैं आपके सामने दिलीप जी के प्रस्ताव को यहाँ एज इट इज़ रख दे रहा हूँ, “मेरी राय है कि नीतीश को गठबंधन में ले लेना चाहिए. बाकी बाद में देखना चाहिए कि क्या करना है. नीतीश को सीट कम देनी चाहिए. बीजेपी भी 8 सीट ही दे रही है. तेजस्वी भी इतनी ही दे दें.”
इस नहले पे दहला मार दिया है या यूं कहें कि अच्छा मज़ाक किया है महेंद्र यादव जी ने, “नीतीश को अगर आरजेडी ने फिर साथ ले लिया तो शरद यादव का क्या होगा.. नीतीश साथ आना चाहते हैं तो उनके सामने कुछ शर्तें रखी जानी चाहिए- 1. नीतीश पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ें और शरद यादव को दें। 2. आरसीपी जैसों से राज्यसभा सीट खाली कराके शरद यादव और अली अनवर को दें। 3. मुख्यमंत्री पद छोड़ें, और शरद यादव अनुमति दें तो उपमुख्यमंत्री बनें। 4. स्पीकर आरजेडी का बनवाएं। 5. लोकसभा चुनाव में सीटों का बँटवारा लालू जी और शरद जी करें, और स्वाभाविक रूप से जेडीयू में टिकट शरद यादव बांटें।”
ऐसा है कि बिहार की राजनीति सर्कस नहीं है और यहाँ की जनता कोई फुटबॉल नहीं कि जब जिसको मन हो आके किक लगा दे कभी सेंटर से कभी फॉरवर्ड से। जैसे बड़ी चालाकी से महागठबंधन में सटकर जीत के नीतीश भाग गए अपने पुराने यार के पास, वैसे ही लोकसभा की सीटें भी सटकर जीत लेंगे और फिर मोदी-शाह अपने डंडे से इनको हांक के अपने टेंट में लेके चले जाएंगे। हां, इस पूरे खेल में सेल्फ गोल करने का किसी का मन हो तो कौन क्या करे! यहाँ की जनता का न्यायबोध ज़बरदस्त है, कोई ख़ुद को ढेर क़ाबिल समझने लगता है और उसे फॉर ग्रांटेड लेता है कि जैसे मन होगा वैसे हांक लेंगे या जोत देंगे, तो उसे बढ़िया से ठिकाने भी लगा देती है। बाक़ी,
जम्हूरियत में कम-से-कम इतनी आज़ादी तो है
के हमको ख़ुद करना है अपने क़ातिलों का इंतख़ाब। (शायद जिगर या कैफ़ी)
मोदी-शाह वाले एनडीए में अपनी डांवाडोल स्थिति को भांपते हुए, 19 में फिनिश होने के खतरे को आंक कर बिहार में मज़बूत विपक्ष को देख ललचाए नीतीश कुमार का कल बयान आया कि नोटबन्दी से सिर्फ़ ग़रीबों का नुकसान हुआ। आगामी लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर होता नुकसान देख जनाब का यह बयान आया है। नीतीश इतने बड़े महामूर्ख तो हैं नहीं कि उन्हें तब समझ में नहीं आया जब समर्थन कर रहे थे। गांव में लोग कहते हैं कि ढेर क़ाबिल आदमी तीन जगह माखता है। दम धरिए, अभी तो इनकी दुर्गति शुरू हुई है! बहुत कुछ भुगतना बाक़ी है। आरएसएस अभी इनका नाक रगड़वाए बगैर इन्हें छोड़ेगा नहीं।
इसके पहले 15 मार्च को भी दिलीप जी ने नीतीश कुमार के प्रति रहम बरतने का मंतव्य प्रकट किया था। तब भी दिलीप मंडल जी का कुछ इसी से मिलता-जुलता प्रस्ताव था- “नीतीश कुमार पल्टी मारें, तो तेजस्वी यादव को दिल बड़ा कर लेना चाहिए”। मैं तेजस्वी को इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज़ करने का अयाचित परामर्श देने का दुस्साहस करता हूँ। हज़ार बार कह चुका हूँ कि लालू-विरोध ही नीतीश जी की एकमात्र युएसपी है, वो लालू प्रसाद का विरोध करना छोड़ दें, तो उनके पास अपना बचेगा क्या सिवाय सिफ़र के?
अलौली (खगड़िया) में एक जगह है हरिपुर, कुर्मी बाहुल क्षेत्र। नीतीश जी को तब भी वहाँ प्रचार के लिए बुलाया जाता था जब अविभाजित जनता दल था और तब भी जब वो जनता दल (जॉर्ज) को समता पार्टी का रूप दे चुके थे।
एक बार लालू प्रसाद के ख़िलाफ़ बोलते-बोलते वो बहक गए यह सोचते हुए कि सजातीय लोगों का इलाक़ा है, यहाँ कौन क्या कहेगा। उन्होंने कहा, “लालू प्रसाद मुंज हैं जिनकी जड़ में मट्ठा डालके हम तहसनहस कर देंगे”। इतना सुनना था कि लालूजी के दल के कुर्मी जाति, पासवान जाति और यादव जाति (यादव बहुत कम संख्या में हैं उस इलाक़े में) से संबद्ध लोग ईंटा-पत्थर मंच पर फेंकना चालू कर दिए। अपना ऊबाऊ-झेलाऊ भाषण बीच में ही छोड़छाड़कर उन्हें भागना पड़ा, बमुश्किल उन्हें हैलीपैड तक पहुंचाया गया।
इस प्रसंग का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ की नीतीश कुमार के मन में लालू प्रसाद के लिए किस कदर ज़हर घुला हुआ है। इसलिए, सियासी रूप से कमज़ोर होने पर नीतीश जी की रोनी सूरत पर मत जाइए। ज़रा सा वो ताक़तवर होंगे कि भस्मासुर की तरह आपही के माथे पर हाथ धरने के लिए परपरिया रौदा ( चिलचिलाती धूप) में आपको दौड़ते रहेंगे। इसलिए,सावधान! अब सियासत भावुकता से नहीं चलेगी कि नीतीश के पास भावना है ही नहीं। व्यक्तिगत जीवन में भी और सामाजिक-राजनैतिक जीवन में भी भयंकर रूप से क्रूर आदमी हैं। कैसे भूल जाते हैं लोग कि उपेंद्र कुशवाहा की वयोवृद्ध मां समेत पूरे परिवार को सामान सहित रात में आवास से फेंकवा दिया, पासवान को तो नेस्तनाबूद करके ही छोड़ दिया, सतीश कुमार, दिग्विजय और जॉर्ज को ख़ून के आंसू रुला दिए, उदयनारायण और जीतनराम को लगातार ज़लील किया। महागठबंधन बनने से पहले ख़ुद लालू की पार्टी को चकनाचूर कर देने से बाज नहीं आए।
नीतीश ख़त्म हो रहे हों, तो एकदम ख़त्म हो जाने दीजिए। वह व्यक्ति न दया का पात्र है न कोई सहानुभूति डिज़र्व करता है। ऐसे शातिर-धूर्त-चालू-तिकड़मी लोगों को दूध-लावा नहीं चढ़ाया करते, नहीं तो काटने पर ट्वीटर पर मत कोस कर ट्रेंड कराया कीजिए कि नीतीश ट्वायलेट चोर है। उस आदमी को खाद-पानी देके पालिए-पोसिएगा तो एक दिन फिर डंसेगा ही। लालूजी की सब बात भूल जाइए, बस उनकी एक पसंदीदा लोकोक्ति याद रखिए:
रोपे पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।
बाक़ी, जो मन आए सो कीजिए।

चौधरी चरण सिंह जी के पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित

देश में किसान संघर्ष का सनातन पर्याय रहे देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित!
#चौधरी_चरण_सिंह

Sunday, May 27, 2018

बिहार की हकीकत से रूबरू बाबुल इनायत

यदि आपको बिहार की स्थिति समझनी है तो कभी फुर्सत में समय निकालकर दोपहर १ - १.३० बजे नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या १४ पर जाइये ! आप में से बहुत लोगों ने यह दृश्य कभी नहीं देखा होगा । प्लेटफार्म के आगे और पीछे साइड सैंकड़ों लोग लाइन में लगे रहते हैं । भीड़ इतनी ज़बरदस्त कि उसे संभालने और किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए RPF के कई जवान तैनात रहते हैं । यह भीड़ बिहार के उन गरीब व्यक्तियों कि रहती है जो बिहार-संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के सामान्य (जनरल) डिब्बे में चढ़ने आये होते हैं । २.३० पर जो ट्रेन खुलती है उसके जनरल डिब्बे में चढ़ने भर कि जगह मिल जाये इसलिए ये लोग सुबह १०-११ बजे से ही लाइन लगाना आरम्भ कर देते हैं । इनका गंतव्य सीवान, छपरा, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर एवं दरभंगा रहता है । RPF कि मौजूदगी के बावजूद मार-पीट, भगदड़, लाठीचार्ज बहुत ही सामान्य है ।
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जनरल डिब्बे की क्षमता १०० लोगों की होती है, परन्तु हर डब्बे में कम से कम २५० लोग तो अवश्य रहते हैं । एक सीट पर चार कि जगह आठ लोग बैठते हैं तो नौवां आ कर कहता है, "थोड़ा घुसकिये जी, आगे-पीछे हो कर बैठिएगा तो थोड़ा जगह बनिए जाएगा । शौचालय से ले कर पायदान तक एक भी जगह खाली नहीं रहता । यदि आप एक बार अंदर चले गए तो शायद शौचालय जाने के लिए ऎसी जद्दोजहद करनी होगी कि शायद आधा-एक घंटा इसी में निकल जाए । यही स्थिति प्रायः बिहार जाने वाली सभी ट्रेन में रहती है - वैशाली एक्सप्रेस, विक्रमशिला एक्सप्रेस, सम्पूर्ण क्रांति एक्सप्रेस, स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस, महाबोधि एक्सप्रेस इत्यादि । यदि आप दिल्ली में नहीं रहते तो कोई बात नहीं । मुंबई, इंदौर, जालंधर, सूरत, अहमदाबाद, बैंगलोर एवं पुणे से जो ट्रेनें बिहार जाती हैं, आप उनमें भी यही स्थिति पाएंगे ।
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बिहार में नौकरी नहीं है । यदि आप बिहार सरकार की नौकरी नहीं कर रहे तो बिहार में आपके लिए कुछ नहीं है । उद्योग का नामोनिशान नहीं है । आप मजदूर हों या मैकेनिक, अकाउंटेंट हों या मैनेजर, इंजीनियर हों या वैज्ञानिक, बिहार में आपके लिए कुछ नहीं है । यहां तक कि खेती करने वाले मजदूरों को भी पंजाब और हरयाणा आ कर बड़े किसानों के यहाँ मजदूरी करनी पड़ती है । दिल्ली में रिक्शा चलाने वाले, कंस्ट्रक्शन लेबर, इधर-उधर काम करने वाले मजदूर - अधिकतर बिहार के होते हैं । यही हाल देश के अन्य शहरों में है विशेष रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश और पंजाब ।
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बिहार को सुनियोजित ढंग से ख़तम कर दिया गया । बिहार को जातिवाद की आग में सालों जलाया गया , गुंडागर्दी और रंगदारी को बेलगाम होने दिया गया, सभी उद्योगों एवं नौकरियों पर क्रूरता से प्रहार किया गया । प्रहार ऐसा कि आज तक बिहार नहीं उभर पाया है । सामजिक न्याय और समाजवाद के नाम पर लोगों को कहा गया कि सड़क और बिजली का कोई काम नहीं क्यूंकि सड़क पर गाड़ियां अमीरों कि चलती हैं और बिजली से मौज-मस्ती अमीरों के घर में होता है । यूनियन और गुटबाजी कर के सारे चीनी मिल और उद्योगों को बंद करा दिया गया । उद्योगपति, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, शिक्षक, स्किल्ड मैकेनिक, एक-एक कर सभी बिहार छोड़ते चले गए । गाँव से जो अनवरत पलायन आरम्भ हुआ वो आज तक जारी है । नीतीश जी ने रोड और बिजली अवश्य दे दिया, परन्तु पिछले 13 वर्ष में उद्योग नहीं आरम्भ कर सके । इस कारण से आज भी बिहार में यदि कोई चारा है तो सरकारी नौकरी ही है । दुःख की बात यह है कि लोग समझते नहीं हैं कि सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती ।
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नौकरी का सबसे बड़ा स्रोत निजी क्षेत्र ही होता है । गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्णाटका, तमिल नाडु - ये सब वो राज्य हैं जहाँ बिहार के लोग नौकरी कि तलाश में जाते हैं - छोटी से छोटी नौकरी से ले कर बड़ी नौकरी तक । इसका कारण एक ही है - यह सभी राज्य industrialised हैं । बिहार में एक ऐसी धारणा बना दी गयी सालों तक कि उद्योगपति लूटेरे होते हैं, उद्योग लगाना एक डाका है । प्राइवेट मतलब लूट । इंडस्ट्री को लूट का पर्याय बना दिया गया । आज बिहार में आलम यह है कि लोग धक्के और ठोकर खाते हुए देश के विभिन्न राज्य में नौकरी करने जाएंगे, लेकिन जैसे ही उद्योग की बात करो सबसे पहले उद्योगपतियों को गाली देंगे । अपने आप में यह एक विचित्र विडम्बना है बिहार के इस समाज की ।
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जब तक कोई ऎसी सरकार नहीं आती बिहार में जिसका प्रमुख फोकस "Industrialization" हो, बिहार इसी गर्त में डूबा रहेगा । पलायन जारी रहेगा और जनता कि निराशा बढ़ती रहेगी । आज दिल्ली, मुंबई, जालंधर, सूरत, बैंगलोर, चेन्नई, इंदौर, पुणे जैसे शहर अपनी क्षमता से कई गुना अधिक बोझ उठाये हुए हैं । इस प्रेशर के कारण इन शहरों का इंफ्रास्ट्रक्चर भी चरमरा चूका है । यह शहर और लोगों को नहीं समा सकते । जब तक बिहार नहीं उठेगा, यह देश नहीं उठ सकता । हम कब तक दुसरे राज्यों पर बोझ बनेंगे ? हम कब तक घर से दूर ठोकर खाते फिरेंगे ? हम कब तक अपनी मिटटी से दूर सिर्फ जीवनयापन की तलाश में दर-दर भटकते फिरेंगे ? क्या बिहार कभी अपने उस स्वर्णिम दौर को पुनः प्राप्त कर सकेगा ? आज देश के जिस राज्य में जाता हूँ, उसका हाल बिहार से बेहतर ही पाता हूँ । यह पीड़ा शायद एक बिहारी ही समझ सकता है ।
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मेरी आप सभी से एक ही सलाह है - छद्म "सामाजिक न्याय" और "समाजवाद" के नाम पर जातिवाद का जहर फिर से न पनपने दीजिये । हमने इसे सालों झेला है और आज भी उसी पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं । एक बिहार फिर भी किसी तरह से इसे संभाल रहा है । इस देश में ३० बिहार न होने दीजिये । हम कहीं के नहीं रहेंगे, हमारी अगली पीढ़ी केवल और केवल हमें कोसेगी । जो भाग सकते हैं, वो विदेश भाग जायेंगे या फिर कोई न कोई उपाय निकाल लेंगे । जो पिसेंगे वह मध्यम-वर्ग, निम्नमध्यम-वर्ग और गरीब तबका ही होगा । आज भी जो बिहार में अमीर हैं, उनकी जिंदगी में शायद ही कोई दिक्कत आया है । बिहार इस देश के लिए एक सीख है । इस देश में और बिहार न होने दीजिये ।
बाबुल इनायत
09507860937
सोशल मीडिया प्रभारी, राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार

Tuesday, May 8, 2018

जिस इंसान के कर्म अच्छे ओर सन्तुलित होते है,
उसके जीवन मे कभी अंधेरा नही होता।
                                बाबुल इनायत
बाबुल इनायत
9507860937
सोशल मीडिया प्रभारी,राष्ट्रीय जनता दल अररिया

                                               

नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...