Monday, November 12, 2018

क्या वृद्धाश्रम में हमारे बुजुर्ग खुश रहते है नही!

क्या वृद्धाश्रम में हमारे बुजुर्ग खुश रहते है नही ।।।



लेकिन क्या वास्तव में बुढ़ापे में और कुछ नहीं चाहिये । क्या वृद्धावस्था में रहने-खाने की जरूरतें पूरी होना ही बहुत है ।

 क्या  सड़क किनारे मिलने वाले भिखारियों का कोई परिवार नहीं होता । होता होगा शायद!
, बड़े शहरों में रोज बन रहे वृद्धाश्रमों में सम्पन्न बुजुर्ग महिला और पुरूषों की भीड़ क्यूँ बढ़ती दिखती है ।
क्या वास्तव में बुजुर्ग हो जाने पर व्यक्ति को परिवार की जरूरत नहीं रह जाती । या फिर वे राजाओं की तरह सन्यास आश्रम का पालन करने के लिये घर छोड़ देते हैं ।
घर से दूर वे बिल्कुल खुश नहीं हैं । वो अपने पूरे परिवार को बहुत याद करते हैं । बस, परिवार ने उन्हें याद नहीं रखा है।

परिवार से दूर रहना कोई आसान काम नहीं है भाईसाहब, प्रत्येक व्यक्ति अपना आखिरी वक्त अपने परिवार को देखते हुये काटना चाहता है । उस वृद्ध या वृद्धा को उसके बेटे का कन्धा मयस्सर नहीं हुआ जिसके पालन-पोषण में उसने अपनी जवानी के दिन-रात एक कर दिये थे ।

जीवन के अन्तिम पढ़ाव में साथी छूटने का गम कितना बड़ा होता है इस बारे में वे लोग ही बता सकते हैं जो इस स्थिति में हैं । चाहे पति हो या पत्नि, एकांकी जीवन बहुत कठिन होता है । तब जीने का एकमात्र सहारा उसके बच्चे होते हैं । टूटे हुये इंसान के दिल पर क्या बीतती होगी जब उसके अपने खून के कतरे उसके साथ अन्जानों जैसा व्यवहार कर जाते हैं । अपने दिल की छोटी सी बात अपने जीवन साथी को बता देने वाला बुजुर्ग, उन बच्चों के तीखे तानों और गैरपन के अहसास को दिल के किस कोने में छुपाता है, कैसे छुपाता है यह वह खुद भी जान नहीं पाता । अपने बच्चों पर अपना अधिकार समझ डांट देने वाले माता-पिता को जब जवाब मिलना शुरू हो जाता है तब उसका स्वाभिमान क्षार-क्षार हो जाता हो जाता होगा ।

आज की औलाद ‘माँ-बाप’ की इज्जत तब तक ही करती है जब तक कि उनसे कुछ प्राप्ति होती रहे ।

दुनियाँ की दौड़ में आगे निकलने की होड़ लगा रहे युवा पता नहीं क्यूँ इतने पत्थरदिल हो जाते हैं कि वे उन्हें भूल जाते हैं जिन्होने उसे दो कदम चलने के काबिल बनाया था । किसी ने कहा था कि वृद्धाश्रम बनाये ही क्यूंॅ जाते हैं? हकीकत में वृद्धाश्रम का बनना उस समाज के मुंह पर तमाचा है जो इंसानियत और संस्कारों की जिम्मेदारी लेता है । ‘औल्ड एज होम्स’ में रहने वाले बुजुर्गों का भी परिवार होता है, उनके होनहार बेटे ऐसे वृद्धाश्रम के खर्चे तो उठा सकते हैं लेकिन उनसे अपने माँ-बाप का बुढ़ापा सहन नहीं होता । लोग भले ही बेटों को इस स्थिति के लिये दोष दें लेकिन हकीकत में बुजुर्गों की इस बेकदरी के लिये वो बेटियां भी कम दोषी नहीं जो उनके बेटों की हमसफर होती हैं ।

सवाल ये है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं । क्या बड़े होते-होते हमारी मानवीय संवेदनाये इतनी गिर जाती हैं कि हम अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा भी नहीं बन सकते? उनकी खिन्नता, चिड़चिड़ाहट, कम सुनना, देर से समझना जैसी शारीरिक अक्षमतायें क्या वाकई हमें इतना क्रूर बना देती हैं कि हमें वे एक बोझ लगने लगते हैं ? क्या वास्तव में वृद्धाश्रमों में रहने वाले हमारे माता-पिता हमसे दूर रहकर ज्यादा खुश रहते हैं ? क्या हमारे बच्चों पर उनका अधिकार नहीं है, क्या हम पर उनका कोई अधिकार नहीं है? क्या वे हमें छोड़ना चाहते हैं, क्या हम बूढ़े ना होगें ?

नहीं, ऐसा नहीं है । यकीन मानिये हमारे माता-पिता चाहें कितने भी भगवान के बड़े भक्त हो जायें लेकिन फिर भी वे हमें छोड़कर जाना नहीं चाहते । उन्हें सबसे ज्यादा खुशी अपने बच्चों के साथ रहने में मिलती है । शरीर हमारा भी बदलेगा, आज चल रहा है, समय गुजरेगा तो वही सारी अक्षमतायें हमारें शरीर में भी आयगीं । यह निश्चित है, तब फिर क्यूँ ना हम उन्हें अपने सीने से लगाकर रखें । हमारे माता-पिता हमारा अभिमान होने चाहियें, उनकी डाॅंट में भी हमारा सम्मान है । उनकी खिसियाहट में भी हमारा भला है । उनके त्याग का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि हमारी खुशी के लिये ही वे वृद्धाश्रम जैसी उस अन्जान जगह चले जाते हैं जिसके बारे में उन्होनें कभी सोचा भी ना था । फिर भी वृद्धाश्रम में रहने वाले फरिष्तों की पीड़ा ना समझ पाये हों तो बस इतना महसूस करके देख लीजियेगा कि आप अभी अपने बच्चों को इस स्वार्थी दुनियां में छोड़कर जाने में कितना खुश होगें ………………….

‘‘इस दिशा में  सरकार को चाहिए  की एक नयी योजना बहुत लाभकारी हो सकती है ।  योजना यह  है कि आगे अनाथआश्रम और वृद्धाश्रम एक साथ बनायें जायेगें । जिससे कि अनाथ बालकों को बुजुर्गों से ममता-दुलार मिल सके और वृद्धों को कोई अपना मानने-कहने वाला मिल जाये । निश्चित ही इस पहल से निराश्रित वृद्धों के जीवन में भी कुछ खुशियाँ लौट सकेगीं ।’’
              बाबुल इनायत
             9507860937
       राजद नेता अररिया बिहार

Sunday, November 11, 2018

मैं मुसलमान हूँ: बाबुल इनायत

मैं मुस्लमान हुं

मै मुस्लमान हूँ, मै प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री   नही बन सकता, क्योकि मेरी तादाद कम है और जातिवाद ज्यादा,  लेकिन मैं कलेक्टर, एडीएम, तहसीलदार, कमिश्नर, एसपी, डीएसपी तो बन ही सकता हूँ।
     लेकिन मै निकम्मा हूं


       मुझ से घंटो पढ़ाई नही होती, अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रौनकें ख़त्म हो जाएगी, जो की मै होने नही दूंगा, मै पढ़ गया तो गुटखा, ताश पत्तियां छूट जाएगी जो की मै छोड़ना नही चाहता।
        मै पढ़ गया तो मुहल्ले की रौनक कम हो जाएगी, दिन भर आवारा गिर्दी इन्ही मुहल्ले में ही तो करता हूँ मै,  हां! काम नही है मेरे पास, लेकिन क्या फ़र्क़ पढता है, अल्लाह दो वक़्त की रोटी तो खिला ही देता है ना!

     हां मै मुसलमान हूँ, और पैदा होते है एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तशरीफ़ पर कि मै पंचर की दूकान खोलूंगा या हाथो में पाने पकड़ कर गाड़ियां सुधारूँगा, या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा।
       हां मै मुसलमान हूँ, , अपने भाइयो की टांग खिंचाई, मेरा अहम शगल है।
   
     आखिर मै क्यों नही पढा ?  या मै क्यों नही पढ़ नही पाया? ये सवाल हो सकता है! लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नही!

       हां मै मुसलमान हूं,और हिंदुस्तान में 30 करोड़ हुँ , लेकिन मै ज्यादातर अनपढ़, गरीब, गन्दी बस्तियों में ही हूं, इसका दोष मै दुसरो पर मंढता हूं, मै चाहता हूँ कि मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आये।

    मै मुसलमान हूं, घर के सामने अतिक्रमण करना भी मेरा अहम शग़ल है, मै पंद्रह फिट की रोड को आठ फिट की करने मै भी माहिर हुँ, फिर उस आठ फिट की रोड़ पर रिक्शा खड़ी करना भी मेरा अधिकार है, हां मै मुसलमान हूँ, जिसका धर्म 'पाकी आधा ईमान', 'तालीम अहम बुनियाद है' मानने वाला है लेकिन मै इस पर कभी अमल नही करता ।
       मै हमेशा सउदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अपनी बडाइयां करता हूँ, लेकिन मैने हिंदस्तान में खुद पर कभी कोई सुधार नही किया, न मै सुधरना चाहता हूँ।
हां मै मुसलमान हूं, मै अनपढ़ हूँ, क्यों की माँ-बाप ने बचपन से गैरेज पर नौकरी से लगाया और मै गरीब घर से हुँ।

      बेहतर तालीम देने के लिए माँ-बाप के पास रुपया नही है, और मेरी कौम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जोह देती है, वो खिलाने मात्र को सवाब समझती है।

      मै मुसलमान हूं, मै खूब गालियां देता हूं, मै रिक्शा चलाता हूं, दूध बेचता हूं वेल्डिंग करता हूं मै गैरेज पर गाड़िया सुधारता हु, मै चौराहे पर बैठ कर सिगरेट पीता हूं,गांजा पिता हूं, ताश पत्ते खेलता हूं, क्योंकी मै अनपढ़ हूं, और मै अनपढ़ सिर्फ दो वजह से हूं, एक–माँ-बाप की लापरवाही, दूसरा –कौम के जिम्मदारो की लापरवाही ।
      माँ-बाप मजबूर थे, लेकिन मेरी कौम मजबूर न थी, न है! मैने आंखो से देखा है लाखो रुपयों के लंगर कराते हुए, मैने आँखों से देखा है लाखों रुपए कव्वाली पर उड़ाते हुए, मैने आँखों से देखा है बेइंतहा फ़िज़ूल खर्च करते हुए।
   काश! मेरे माँ-बाप या मेरी कौम मेरी तालीम की फ़िक़्र मंद होती तो आज मै प्रधान मंत्री या मंत्री न सही, लेकिन मैं आज क्लेक्टर, एडीएम,कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता, बिना वोट पाये भी लाल बत्ती में होता, या कम से कम मै डॉक्टर,इंजिनियर,आर्किटेक्चर,या एक अच्छा बिजनेस मैन तो होता ही, लेकिन बचपन से मन में एक वहम घर कर गया है, "कि मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानो को यहाँ नौकरी आसानी से नही मिलती" लेकिन मैं ये तो भूल ही गया कि मेरे नबी ने तमाम जिंदगी तिजारत ही की और तालीम पर अहम् जोर दिया, फिर मै उनका उम्मती होकर नौकरी न मिलने की बात सोच कर तालीमात क्यों हासिल नही करता ?

  (नोट- दोस्तों ये तहरीर सिर्फ इस्लाही पोस्ट के लिए लिखी गयी है, रिक्शा चला कर पेट पालना या वेल्डिंग करना  दूध बेचना गैरेज के पाने उठाना या मजदूरी करना कोई गलत काम नही, लेकिन हम इसके लिए पैदा हुए है ये सोच कर तालीम हासिल न करना गलत है, खूब पढ़ाई करो, कि हर पद पर सिर्फ तुम दिखो, तुम्हे इज्जत से देखे, तुम पढ़े लिखे तबके में गिने जाओ, अंधविश्वास से दूर एक नयी जिंदगी जीकर मुल्क़ व क़ौम की ख़िदमत करे  और.....जहां प्रोपोगंडा नामक चीज ही न हो, आने वाली नस्लो को पढा लिखा कर हम अब तक के अपने इतिहास को बदल दे, यही एक ललक है कि ये कौम एक नया सवेरा देखे, कि जब भी सुबह का अखबार देखे हर अखबार के फ्रंट पेज पर आये  इस शहर के नए कलेक्टर नए एडीएम नए कमीशनर तुम हो!!
बाबुल इनायत 

9507860937

राजद नेता अररिया बिहार

Thursday, November 8, 2018

युवा जागृति मंच का 14 वाँ विशाल रक्दान उत्सव 18 नवम्बर को आप सभी आमंत्रित।



आज आपसभी को परिचय करवाता हूँ पवन कुमार चौधरी यानी कार्तिक भय्या से, जो इंसान के रूप में भगवान है।
कार्तिक भय्या की जितनी तारीफ करूँ फिर भी कम है। कार्तिक भय्या 18/11/2005 से एक संस्था चला रहे है जिसका नाम युवा जागृति मंच है बैगैर कोई लोभ के 14 वर्ष से समाज की सहायता में त्तपर्य है।
कार्तिक भय्या अभी तक सैकड़ो की जनिदगी बचा चुके है।
कार्तिक भय्या अभी तक 34 बार रक्तदान कर चुके है। ओर 35 वाँ रक्तदान 18/11/2018 यानी युवा जागृति मंच के 14 वाँ विशाल रक्तदान उत्सव में करेंगे। कार्तिक भय्या का लक्ष्य है 100 बार रक्तदान करना।
कार्तिक भय्या बार बार कहते है। 👉 ना कोई #लक्ष्य ना कोई #आशा ना किसी से #प्रतिस्पर्धा बस लोगों की #जिंदगी_बचे यही हम सबों की #इच्छा । #रक्तदान से बढ़ता है #मान इससे बड़ा नही कोई #सम्मान । #रक्तदान   #मानव_कल्याण ।
आप भी हिस्सा बने युवा जागृति मंच का 18 नवम्बर रविवार  :- त्रिदेव भवन,रजनी चोक पूर्णिया शुबह 9:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक





क्या दिन      क्या रात              
     रक्त की जरुरत          
          हर पल  हर वक्त         
          #रक्त_______रक्त________रक्त                           आप सभी लोगों से आग्रह है की #विशाल_रक्तदान_उत्सव मे अवश्य आयें । 
#रक्तदान_जागरुकता_अभियान_के_तहत 
 ( युवा जागृति मंच )  द्वारा रजनी चौक स्थित 
त्रिदेव विवाह भवन  मे
 ( 14 #वाँ_विशाल_रक्तदान_उत्सव ) का आयोजन  किया जा रहा है । दिनांक : 18 / 11 / 18  दिन रविवार 
समय सुबह 9 :30 बजे से         शाम 6 : 00 बजे तक । 
उक्त अवसर पर पधारकर रक्तदान करके आप संस्था के मानव सेवा कार्य ( #रक्तदान_मानव_कल्याण )  मे सहयोग करें । रक्तदान से बढ़ता है मान इससे बड़ा नही कोई सम्मान ।
रक्तदान के इच्छुक  9431292364/9852945118 पर संपर्क करें ।धन्यवाद ।






तेजश्वी यादव जी को 29 वीं जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाए। "युवा दिवस"

युवाओ की आन-बान-शान बिहार विधानसभा में देश के सबसे युवा प्रतिपक्ष नेता ओर देश के सबसे युवा उपमुख्यमंत्री श्री तेजश्वी यादव जी को  29 वी जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाए।  आइए हमलोग संकल्प लें 09 नवम्बर अर्थात आज "युवा दिवस" के अवसर पर पूरे प्रदेश में बेटियों के खिलाफ बढ़ते अपराध को लेकर विशेष तौर पर मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड,गया में हुए घटना को लेकर पूरे प्रदेश के सभी युवा साथी बेटियों की रक्षा एवं बेटियों के लिए सुरक्षित हेतु शपथ लें।
बाबुल इनायत
9507860937
नेता राजद अररिया बिहार


नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...