Tuesday, August 21, 2018

“ईदुल-अज़हा” के अवसर पर कुच्छ सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत है!





#EidulAzha
“ईदुल-अज़हा” के अवसर पर कुच्छ सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत है!
1. क़ुर्बानी ज़रूर करें लेकिन किसी भी तरह का कोई गैर क़ानूनी काम न करें और ना ही किसी ऐसे जानवर की क़ुर्बानी करें जिसकी इजाजत आप को राज्य सरकार या केन्द्र सरकार ना देती हो(प्रतिबन्धित हो),
2. प्रसाशन को पूरा सहयोग करें, किसी भी हाल में क़ानून को अपने हाथ में ना लें, देश एक व्यवस्था (क़ानून, constitution) के तहत चल रहा है उस कान्सटीटूशन को मज़बूत करें, भंग ना करें।
3.आपसी सौहार्द हर हाल में बनाए रखें, त्योहार तो तीन दिन में खत्म होजाएगा, समाज में हमें रहना है उसमें खठास ना आने पाए उसका ख्याल रखें।
4. क़ुर्बानी खुले में बिलकुल ना करें, करने के बाद उसके बचे हुए हिस्से को(जो प्रयोग में ना लाए जाते हैं) उन्हें अच्छी तरह दफ़न करें, इस बात का पूरा खयाल रखें के कोई जानवर इसे बाहर या सड़कों पर ना लेजा सके।
5. पूरी तरह सतर्क रहें, असमाजिक तत्त्वों से होशियार रहें, नज़र चौकन्नी रखें, धार्मिक स्थलों की भी निगरानी करें ताकि कोई असमाजिक तत्त्व किसी के भी धार्मिक स्थल पर कुच्छ अप्रीय चीज़ें रख कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश ना करे।
अगर ऐसा कुच्छ भी पता चले तो तुरन्त प्रसाशन को इसकी जानकारी दें, याद रखें चाहे कुच्छ भी हो लेकिन प्रसाशन का काम अपने हाथ में ना लें ।
6. क़ुर्बानी करें लेकिन “दिखावा, बड़बोलेपन और फ़ज़ूल खर्ची” से बचें।
7. Whatsapp, Facebook, Twitter (Social Media) पर कुर्बानी का photo या Video बनाकर ना डालें।
8. हमसब इंसान हैं, हमें उपर वाले ने समझ दी है , अपनी समझ और अपनी पसन्द से धर्म को अपनाने और उसपर चलने की, समझ दी है इन्सानों को जोड़ने की तोड़ने और लड़वाने की नहीं, धर्म और समझ “एक दूसरे का सम्मान, एक-दूसरे को समझने की समझ “ प्रदान करता है, धार्मिक होने का सबसे बड़ा प्रमान यही है।

आईये हमसब मिल कर अहद करें...त्योहार मिलजुल कर एक-दूसरे को सम्मान देते हूए एंव प्यार-खुशियां बांटते हुए मनाऐंग ।
#EidulAdha #babulinayat #BabulinayatRjd

Wednesday, August 15, 2018

15 अगस्त

15 अगस्त 1947 को हो गए थे आजाद हम,
आजादी के 72 साल बाद भी क्या,
समझ पाए आजादी का मतलब हम,
पहले ब्रिटिश शासन के तहत,
जकड़े थे गुलामी के बेड़ियों में,
आज संविधान लागू होने के बाद भी,
जाति-पाति के कारण हो गए हैं,
अपने ही देश में गुलाम हम,
पहले रंग-भेद के जरिए गोरों ने हमको बाँटा था,
आज हमारे अपनो ने ही,
बाँट दिए जातिवाद और धर्मवाद के नाम पर हम,
जो भारत पहचान था कभी,
एकता, अखण्डता और विविधता का,
वो भारत ही झेल रहा है दंश अब आन्तरिक खंडता का,
बाँधा था जिन महान देशभक्त नेताओं ने,
अपने बलिदानों से एकता के सूत्र में हमें,
अपने ही कर्मों से अब उनकी आत्माओं को,
दे रहे हैं लगातार त्राश हम,
जातिवाद, आरक्षण और धर्मवाद ने,
बुद्धि हमारी को भ्रमाया है,
राजनेताओं ने अपने हित की खातिर,
हमको आपस में लड़वाया है,
बहुत हुआ सर्वनाश अपना,
कुछ तो खुद को समझाओं अब,
देश पर हुए शहीदों की खातिर,
समझो आजादी का मतलब अब।
जय हिन्द, जय भारत।
#HappyIndependentDay #Babulinayat

Sunday, August 5, 2018

बंद कमरों में रहने वाली मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियाँ भी सुरक्षित नहीं थीं। लड़कियाँ कहाँ जाएँगी? हमने ऐसा समाज बना डाला है जिसमें लड़कियाँ न घर में सुरक्षित हैं न सड़कों पर। छोटी बच्चियों के साथ जो कुछ हुआ उसकी कल्पना करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बेहोश करने की दवा देकर उन्हें समाज में रसूख रखने वालों के पास भेजा जाता था जहाँ उनके साथ रेप किया जाता था। जिस देश में लड़कियों के साथ इतना घिनौना व्यवहार किया जा रहा है, उसे जेंडर से जुड़े सवालों से भागना नहीं चाहिए। सरकार को कई सवालों का जवाब देना है:

--जिस ब्रजेश कुमार ने लड़कियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया, उसे आरोप के सामने आने के बाद भी टेंडर कैसे दे दिया गया?

कुछ सवाल तो समाज के लिए भी हैं:

--रेपिस्टों को इतनी हिम्मत कहाँ से मिलती है कि वे सीबीआई जाँच की घोषणा सुनने के बाद मुस्कुराते नज़र आते हैं? क्या समाज ने रेप को उतना बड़ा मुद्दा समझा है जितना समझा जाना चाहिए था?

--रेपिस्टों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाली पार्टियों का समर्थन क्यों किया जाता है? रेपिस्टों के पक्ष में रैली निकालने वालों को समाज अलग-थलग क्यों नहीं करता?

यह बहुत अच्छी बात है कि देश के कई हिस्सों में लोग मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियों को न्याय दिलाने की माँग करते हुए सड़कों पर उतरे। न्याय की डगर लंबी और कठिन ज़रूर है, लेकिन एक दिन मंज़िल ज़रूर मिलेगी।
#Babulinayat

Saturday, August 4, 2018

किसी नेता के शामिल हो जाने भर से कोइ प्रोटेस्ट नकली नही हो जाता ।ऐसे विरोध प्रदर्शन को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कहकर खारिज कर देना भी एक तरह की राजनीति ही हैं साथ ही न खुद कुछ करना और न दुसरे को करने देना बाली कहावत ही चरितार्थ होती है।

सवाल लड़कियों के न्याय का है,सुरक्षित देश और समाज का है।ऐसे मुद्दों पर हर किसी को अपने अपने तरीके से आवाज बुलंद करना चाहिये ,चाहे वो नेता हो या अभिनेता या मिडिया या आम आदमी।अगर आपको लगता है कि नेता ऐसे मुद्दों को सिर्फ अपने वोट बैंक में इजाफा करने के लिये उठा रहा है तो कौन सा प्रोटेस्ट में साथ देने भर से आपका वोट उसे ट्रांसफर हो जायेगा।कम से कम समाजहित से जुड़े मुद्दे पर एक साथ आवाज तो बुलंद किया ही जा सकता है वोट भले ही सब अपने अपने पसंदीदा नेता या दल को दें।

वैसे भी मुजफ्फरपुर बालिका गृह जैसे जघन्यतम कांड पर मिडिया और सिविल सोसाएटी का जो रुखा रवैया रहा ,उससे इनके सेलेक्टिव अप्रोच का तो खुलासा हुआ ही,साथ ही यह भी पता चला कि ये किसके इशारे पर खामोश रहे।अव्वल तो देखिये विपक्ष के जन्तर मन्तर पर आज के कैंडिल मार्च को मिडिया 2019 की तैयारी बता रहा।

सिर्फ सोशल मिडिया ही इस कांड पर अपने तरीके से दबाव बनाता रहा । ओर खाश तौर से तेजस्वी यादव जी का धन्यवाद जो बच्चियों की सुरक्षा की खातिर इस पूरे कांड का राष्ट्रीय स्तर पर पर्दाफाश करने का काम किया।नितीश कुमार ऐसे ही आज अचानक शर्मसार नही हुये ,ये हमारे-आपके और कुछ चुनिंदा नेताओं के सक्रियता के कारण ही हुआ है नही तो शर्म से सर पहले ही झुक जाना चाहिये था।और कौन नही जानता कि ब्रिजेश ठाकुर किसके दम पर खुलेआम ठठा रहा था ।
मुजफ्फरपुरबालिकागृहकांड
Babilinayat


नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...