बंद कमरों में रहने वाली मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियाँ भी सुरक्षित नहीं थीं। लड़कियाँ कहाँ जाएँगी? हमने ऐसा समाज बना डाला है जिसमें लड़कियाँ न घर में सुरक्षित हैं न सड़कों पर। छोटी बच्चियों के साथ जो कुछ हुआ उसकी कल्पना करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बेहोश करने की दवा देकर उन्हें समाज में रसूख रखने वालों के पास भेजा जाता था जहाँ उनके साथ रेप किया जाता था। जिस देश में लड़कियों के साथ इतना घिनौना व्यवहार किया जा रहा है, उसे जेंडर से जुड़े सवालों से भागना नहीं चाहिए। सरकार को कई सवालों का जवाब देना है:
--जिस ब्रजेश कुमार ने लड़कियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया, उसे आरोप के सामने आने के बाद भी टेंडर कैसे दे दिया गया?
कुछ सवाल तो समाज के लिए भी हैं:
--रेपिस्टों को इतनी हिम्मत कहाँ से मिलती है कि वे सीबीआई जाँच की घोषणा सुनने के बाद मुस्कुराते नज़र आते हैं? क्या समाज ने रेप को उतना बड़ा मुद्दा समझा है जितना समझा जाना चाहिए था?
--रेपिस्टों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाली पार्टियों का समर्थन क्यों किया जाता है? रेपिस्टों के पक्ष में रैली निकालने वालों को समाज अलग-थलग क्यों नहीं करता?
यह बहुत अच्छी बात है कि देश के कई हिस्सों में लोग मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियों को न्याय दिलाने की माँग करते हुए सड़कों पर उतरे। न्याय की डगर लंबी और कठिन ज़रूर है, लेकिन एक दिन मंज़िल ज़रूर मिलेगी।
#Babulinayat
--जिस ब्रजेश कुमार ने लड़कियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया, उसे आरोप के सामने आने के बाद भी टेंडर कैसे दे दिया गया?
कुछ सवाल तो समाज के लिए भी हैं:
--रेपिस्टों को इतनी हिम्मत कहाँ से मिलती है कि वे सीबीआई जाँच की घोषणा सुनने के बाद मुस्कुराते नज़र आते हैं? क्या समाज ने रेप को उतना बड़ा मुद्दा समझा है जितना समझा जाना चाहिए था?
--रेपिस्टों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाली पार्टियों का समर्थन क्यों किया जाता है? रेपिस्टों के पक्ष में रैली निकालने वालों को समाज अलग-थलग क्यों नहीं करता?
यह बहुत अच्छी बात है कि देश के कई हिस्सों में लोग मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियों को न्याय दिलाने की माँग करते हुए सड़कों पर उतरे। न्याय की डगर लंबी और कठिन ज़रूर है, लेकिन एक दिन मंज़िल ज़रूर मिलेगी।
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