Tuesday, June 26, 2018

नीतीश कुमार को गठबंधन में नो एंट्री तेजस्वी यादव।


तेजस्वी अपनी जगह अटल-अविचल हैं। कहीं किन्हीं को कोई कन्फ़्यूज़न नहीं होना चाहिए। यही स्पष्टता और तेवर बरकरार रहे! गाभिन बात बोलने के लिए नीतीश को छोड़ दीजिए। गोलमटोल बोलना और गच्चा देना उनकी युएसपी है, तेजस्वी की पहचान भिड़ाभिड़ी वाली है, वही इनकी ताक़त है। सुनिए, तेजस्वी ने इस बार ठोक-बजा के बोल दिया है, अब इधर ताकाझांकी की गुंजाइश क्षीण है।
"हमारे सामने राहुल गाँधी जी की जो बात हुई, उन्होंने कहा कि राजद और हम एक लॉन्ग टर्म प्लान बना रहे हैं और उस पर हम लोग काम कर रहे हैं। तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। अब जनता दल (युनाइटेड) के लोग भी कहते हैं कि कांग्रेस ने गंवा दिया मौक़ा। त्यागी जी ने भी तो बोला, कई बार उन्होंने बोला, तो ये बात आई कहाँ से? तो इसलिए एक बात जान लीजिए, हमारे चाचा जहाँ भी रहेंगे, जिस गठबंधन में भी रहेंगे, उस गठबंधन की नैया डुबोने का काम करेंगे। अब वो पलटी मारें, न मारें हमलोग क्या...उसके लिए हम क्यूं चिंतित रहें? आप इ बात बताइए न यहाँ तो जबतक राष्ट्रीय जनता दल में हमलोग हैं, हमलोग उनको कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते हैं। एक बात, कोई भी कहीं से भी किसी भी प्रकार का दबाव हो, हमलोग दबाव जो है, उसमें आने वाले नहीं हैं। और जो जनता की जो माँग है, जनता की जो बात है, हम उसको सुनने का काम करेंगे; जो जनता कह रही है। जनता यही कह रही है कि नीतीश जी के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जिन्होंने बिहार के मैंडेट के साथ खिलवाड़ करने का काम किया, जिन्होंने 2 लाख ऑनलाइन तलवारें बटवाने का काम किया, जो कलम की बात नहीं करते। जिन्होंने एससी-एसटी क़ानून को ख़त्म करने का काम किया, आज नीतीश कुमार जी वहाँ हैं। जो लोग नागपुरिया क़ानून को लागू करना चाहते हैं, आज नीतीश जी वहाँ हैं और एक भी मसले पे उन्होंने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी। ये बात आपलोग ध्यान से सुन लीजिए। क्या कांग्रेस के लोग चाहेंगे कि जिन्होंने एससी-एसटी क़ानून को ख़त्म करवाने का काम किया, जो पार्टनर जो सहयोग करता रहा, ऐसे लोग..."
- तेजस्वी यादव
                                           बाबुल इनायत
                                          9507860937
         सोशल मीडिया प्रभारी, राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार
                                      Babulinayat4Rjd


Friday, June 22, 2018

बाबुल इनायत Babul Inayat


जो अपने कदमो की काबिलियत पर विश्वास रखते है।
वही अपने मंजिल पे पहुंचते हैं।
 
BabulInayat

Thursday, June 21, 2018

अंतरास्ट्रीय योगा दिवस

आरएसएस के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार के निर्वाण दिवस 21 जून को अंतरर्रष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन योग करने से चीन से मैट, टीशर्ट्स आयात करने वाले व्यापारी,इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी के मालिक, कमीशन खोर नेता और बाबा रामदेव जैसों का बड़ा लाभ होता है। पिछले 4 सालों में इस मेगा इवेंट के लिए अरबो रुपये बारिश में बहा दिए गए। इतने धन से सरकारी स्कूलों में व्यायाम शिक्षक नियुक्त करने बजट दे दिया जाता तो कई बेरोजगारों का कल्याण हो गया होता और आने वाली पीढ़ी योग और स्वास्थ्य के महत्व को बेहतर समझ सकती थी। खैर ,केशव बलीराम हेडगेवार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
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Wednesday, June 13, 2018

लालू प्रसाद यादव अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा ब्लॉक बनवाए,सबसे ज्यादा प्राथमिक विद्यालय खोले,सबसे ज्यादा यूनिवर्सिटी की स्थापना की। बाबुल इनायत

सबसे अधिक ब्लॉक लालू ने बनाए, सबसे ज़्यादा प्राथमिक विद्यालय लालू ने खोले, सबसे ज़्यादा युनिवर्सिटी की स्थापना लालू ने की। कामकाजी महिलाओं के लिए माहवारी के दिनों में विशेष कष्ट का ख़याल करते हुए विशेषावकास का प्रावधान लालू ने किया। आधी आबादी को लेकर बहुत संज़ीदे रहते थे। उनके साथ काम करने वाली महिला ब्यूरोक्रेट्स कभी असहज नही हुईं। महिलाओं के प्रति बड़ा ही मर्यादित नज़रिया व आचरण रखते हैं लालू प्रसाद। पर, यही बात पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय या मौजूदा मुख्यमंत्री के लिए पक्के तौर पर नहीं कह सकते। कुछ ब्यूरोक्रेट्स तो कहते हैं कि उनकी गेज़ बड़ा ही अनकंफर्टेबल कर देती।

रमणिका गुप्ता कहती हैं कि “जेंडर के आधार पर मुझे बिहार विधानसभा गालियां कई बार खानी पड़ीं। एक बार मैं कोई मुद्दा उठाते हुए टेबल पर चढ़ गयी तो एक नेता चिल्लाये, "नाच नचनिया नाच"। ऐसे कई अनुभव रमणिका अपने राजनीतिक जीवन के दौरान के बताती हैं। रमणिका यह भी जोड़ती हैं, "मेरी सीट के तब पीछे ही बैठने वाले लालू प्रसाद ऐसी ओछी टिप्पणियों से दूर रहते थे”।

लालू प्रसाद से पहले बिहार में कोई मुख्यमंत्री ही नहीं हुआ जो इतना भी संवेदनशील हो कि हर माह विशेष कष्ट के दिनों में कामकाजी महिलाओं के लिए दो दिन के विशेष अवकाश का प्रावधान करे। बहुधा मीडियानिर्मित धारणाप्रधान समाज में पुष्पित-पल्लवित महिलाएं भूल जाती हैं कि महीने के विशेष कष्ट के दिनों में उनका विशेष ख़याल करते हुए लालू ने सत्ता में आने के दो साल के अंदर सेवारत खवातीन के लिए यह व्यवस्था कर दी। लालू को गरियाने से पहले ज़रा गूगल कर लें कि जो काम लालू ने आज से 25 साल पहले कर दिया था, वो काम आज भी इस देश के कितने सूबों के मुख्यमंत्री कर पाए हैं? यह तो सरासर कृतघ्नता है। कम-से-कम वो तो ‘गंवार’ सीएम रहे लालू का मज़ाक उड़ाना बंद कर दें। उन्हें तो क़ायदे से उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

लालू जी कम-से-कम पहनावे-ओढ़ावे के मामले में किसी दिखावे-ढकोसले में कोई बहुत यक़ीन नहीं करते। उनका अपना शऊर है, अपना अंदाज़ है। वो तो लु़ंगी-बनियान में भी यूं ही सहज रहते हैं, इंटरव्यू भी ऐसे ही देते हैं, यही उनका याकि अधिकांश बिहारी परिवारों में पहनने-ओढ़ने का तौर-तरीक़ा है। गांधीजी को क्या कहिएगा कि आदमी नंगधड़ंग था, अशालीन था, अशिष्ट था! (पर, प्रेम कुमार मणि जी के मन में ऐसी खलिश और रंजिश है कि तेजस्वी की तारीफ़ करते हुए भी वो लालू को निशाने पर ले लेते हैं। उन्हें लालू प्रसाद के पहनावे-ओढ़ावे से भी दिक्कत है। अब कोई बताए कि अस्वस्थ हालत में कोई प्रैस से आए कपड़े पहनकर बिस्तर पर लेटकर स्वास्थ्य लाभ करता है? घर में लोग कैसे रहते हैं?)

लालू जी ने तो एक सभा में कुर्ते को खोलकर, बनियान निकालकर कुर्ता पहना, फिर उसके ऊपर बनियान। और, कहा कि अब बिहार में यही होगा। जो नीचे थे, वो अब ऊपर आएंगे, वक़्त का चक्का अब घुमेगा। जब वो यह कहते थे, तो इस अपील का गज़ब का असर होता था।


                          बाबुल इनायत
                         9507860937
सोशल मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार
लालुबिहारकेलाल  बाबुलइनायत BabulInayat Rjd SocialMedia Araria

Tuesday, June 12, 2018

उन्हें लालू आखिर अखरता कियूं है? बाबुल इनायत

उन्हें लालू आखिर अखरता क्यों है ???
वजह दरअसल ये है :
जिस बिहार में लालू यादव के पहले विधानसभा और लोकसभा में आधे से ज्यादे अगड़ी जातियों का बोलबाला था, लालू यादव ने उसे आधे से कम पर लाकर खड़ा कर दिया। नहीं समझें ?
तो आईए आंकडा देखिए -
वर्ष 1980 और 1985 में उच्च जाति के विधायकों की संख्या 118 और 105 थी। वहीं पिछड़ी जाति के विधयकों की संख्या 96 और 90 थी।
लेकिन, जब लालू का आगमन हुआ, तो इस उच्च जातियों के एकाधिकार का मानों पतन शुरू हो गया !
देखिए कैसे :-
1990 में लालुजी की सरकार बनी तो उस वक़्त पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या 117 हो गई और उच्च जाति के विधायकों की संख्या 105 पर आ गई।
यानी कि अपने आने के साथ ही पहली बार बिहार के इतिहास में पहली बार बिहार की बहुसंख्य आबादी के पिछड़ों की सरकार बहुमत में आयी।
अब ये कारवाँ थमा नहीं उल्टा बढ़ता गया। और साथ ही लालू यादव उच्च जातियों के आंखों की चुभन बनता गया।
सामाजिक चेतना इतनी जग चुकी थी लालुजी की दूसरी बार सरकार 1995 में दूसरी बार सरकार बनीं तो उच्च जातियों के विधायकों की संख्या मात्र 56 होके रह गई, और पिछड़ी जातियों के विधयक की संख्या 161 पहुंच गई !
सिलसिला ऐसा शुरू हुआ लालू युग से, कि लालू बाद उच्च जाति कभी बिहार की गद्दी पर बैठ नहीं पाई।
देखा जाए तो वोजि लालू ही हैं जिन्होंने "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" को लागू करके दिखा दिया !!
आपकी दीर्घायु हों लालुजी।
स्वाभिमान जगाने वाले को नेता ही कहते हैं।
आप नेता हैं और रहेंगे ! ~

Monday, June 11, 2018

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून

मेरे प्यारे मित्रों, बाल श्रम एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा हो गया है जो राष्ट्र के विकास को बहुत बड़े स्तर पर प्रभावित करता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, बच्चे देश का भविष्य होते हैं तो फिर लोग क्यों बाल श्रम को अपने थोड़े से फायदे के लिए प्रयोग कर रहे हैं। वो हमारे नजरिये से क्यों नहीं देखते, वो क्यों छोटे, मासूम बच्चों को अपना बचपन नहीं जीने देते? वो क्यों बच्चों को उनके शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित करते हैं। कुछ उद्यमी और व्यापारी कुछ कामों में बच्चों को बहुत कम कीमत पर शामिल करते हैं। वो यह सब अपने लालचीपन और कम कीमत पर अधिक काम कराने के लिए करते हैं।

बाल श्रम छोटे बच्चों को उनके मासूम, यादगार व बचपन के पलों से महरुम कर देता है। यह उनकी स्कूली शिक्षा को जारी रखने में बाधा उत्पन्न करता है क्योंकि यह उन्हें मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक रुप से परेशान करता है। यह बच्चों के साथ-साथ देश के लिए भी बहुत ही खतरनाक और हानिकारक बीमारी है। यह शोषणकारी प्रथा पूरे विश्व में, कड़े नियमों और कानूनों, जो बाल श्रम को निषेध करते है, के बावजूद आज भी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में जारी है। यह सामाजिक मुद्दा समाज में प्राचीन काल से ही बहुत वर्षों से चला आ रहा है जिसने विकास को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है।

बाल श्रम में अधिकतर बच्चे मैदानी कार्यों जैसे - कृषि, कारखानें, सामूहिक घरेलू कार्य, खनन, उत्पादन और अन्य कार्यों में लगे हुए हैं। उनमें से कुछ रात की शिफ्ट (पाली) में या समय से अधिक काम (ओवर-टाइम) की आवश्यकता और घर की वित्तीय हालत को सुधारने के लिए अधिक आय प्राप्ति करने के लिए करते हैं। उनके काम करने की सामान्य दिनचर्या 12 घंटे लम्बी होती है जिसके लिए उन्हें बहुत कम राशि वेतन के रुप में मिलती है। बाल श्रम के लिए बहुत कम पारिवारिक आय, गरीब बच्चों के लिए उचित सुविधाओं के साथ स्कूलों की अपर्याप्त संख्या, और गरीब माता-पिता की अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण व प्राथमिक कारक हैं।

यह मुद्दा बहुत बड़े विस्तार से विकासशील देशों में गरीबी, खराब स्कूली शिक्षा के अवसर, अधिक जनसंख्या दर, वयस्कों के लिए प्रतिस्थापनों की कमी आदि के कारण एक वायरस की तरह फैल रहा है। बाल श्रम की सबसे ज्यादा घटनाएं 2010 में उप-सहारा अफ्रीका में दर्ज की गयी थी। इसके अनुसार, अफ्रीका के 50% से अधिक बच्चे (जिनकी आयु 5-14 साल के बीच थी) कार्यरत थे। वर्षों से पूरे संसार में, कृषि क्षेत्र सबसे अधिक बाल श्रमिकों को रखता है। बाल श्रम का एक बड़ा प्रतिशत ग्रामीण परिवेश और अनौपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था में पाया जाता है जहाँ बच्चे जबरदस्ती माता-पिता या नियोक्ताओं के द्वारा काम पर लगाये जाते हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, विश्वभर में बाल श्रम की घटनाओं में गिरावट आयी है (1960 में 25% थी हालांकि 2003 में, 10% की कमी आयी है)।


मेरे प्यारे दोस्तों, हमें विस्तार से इस समस्या के बारे में जागरुक होना चाहिये और इस मुद्दे को समाज से हटाने के लिए कुछ सकारात्मक कदमों को उठाना चाहिये। देश के युवा होने के नाते, हमें देश के विकास और वृद्धि के लिए अधिक जिम्मेदार होना चाहिये, इसलिए इस समस्या को बढ़ने में अपनी दखल देकर रोकें और सकारात्मक रुप से कार्य करें।

बच्चों के मासूम बचपन के खोने पर, बिलख रहा हैं विश्व,
न रोका गया इसे जल्दी से तो, खो देगा हर राष्ट्र अपना भविष्य ।

राष्ट्र के उत्थान के लिए है, ये एक समाधान,
बाल श्रम के रोक कर, बनाये देश महान।।

धन्यवाद

जय हिन्द, जय भारत।

Sunday, June 10, 2018

लालू प्रसाद यादव जी को 71 वीं जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। Hpappy Birthday Lalu Yadav बाबुल इनायत


तानाशाही सत्ता के दुर्ग से बेखौफ, छाती ठोंके, लट्ठ गाड़े, आँखों में आँखे डाल बिना घुटना टेके टकराते रहना और उसकी कीमत चुकाते रहने का नाम ही लालू प्रसाद है और यही उनका वैशिष्ट्य है
ग़रीबों के स्वाभिमान, वंचितो के सम्मान और वांछितों के अभिमान लालू प्रसाद यादव जी को 71 वें जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनाएं।
HBDLaluJi

Tuesday, June 5, 2018

बड़ी तादात में अच्छे नम्बरों से पास होने वाले बच्चों को देखकर खुशी होती है,फिर सोचकर डर जाता हूँ कि जब यही बच्चे सरकारों से नौकरी मांगेंगे,तो सरकारी लाठियाँ, शायद गोलियाँ भी उनका स्वागत करेंगीं ,पहले से फिक्स इंटरव्यू में लाख रुपये का सूट पहनकर और हजारों की कलम लगाए एक फकीर उन्हें पकौड़े तलने की सलाह दे देगा ,और फिर नौकरियाँ न होने या न मिलने पर वे टॉपर बच्चे भी सारा ठीकरा आरक्षण पर फोड़ देंगे।कोई धूर्त मुख्यमंत्री इन्हें महाभारत काल मे मिला इंटरनेट दिखा जायेगा, कोई घटिया नेता इन्हें नागरिक से हिन्दु या मुसलमान बनाकर अपना भक्त बना लेगा ,ये ही टॉपर बच्चे किसी दो कौड़ी के नेता के लिए अपने अपनों से झगड़ने लगेंगे ,ये ही टॉपर बच्चे किसी पंथ या वाद के चक्कर मे फसेंगे,कोई दलाल गरीबों की मदद के नाम पर इन्हें ठग ले जाएगा और फिर वो पैसा बीयर में उड़ा देगा,
कितना डरावना है ये सोचना भी ,मगर फिर भी जो पास हुए/जो नहीं हो पाए,जो टॉपर हैं ,जो एवरेज नम्बरों से पास हुए,सभी को दुआएँ,अच्छे छात्र के साथ साथ अच्छे नागरिक भी वे बनें ,और बने रहें।

मोदी द्वारा ज़ोर-शोर से शुरू की गईं विभिन्न योजनाओं की ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?



मोदी सरकार द्वारा बीते चार सालों में बदलाव के बड़े दावों के साथ शुरू की गईं विभिन्न योजनाएं कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर पाने में नाकाम रही

चार साल पूरे होने के बाद भी नरेंद्र मोदी सरकार की मुख्य योजनाएं दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया प्रोग्राम, उज्ज्वला योजना और जन धन योजना कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करने में नाकामयाब रही है. इसके अलावा मुद्रा और हाउसिंग योजना के तहत 2022 तक सबको घर जैसी योजनाएं बैंकों के लिए नई मुसीबत बनी हुई है, जो पहले ही न चुकाए गए कर्जों के जाल में फंसे हुए हैं.

दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना

सरकार ने हाल ही में घोषणा की कि दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 18,452  गांवों के विद्युतीकरण की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. लेकिन इस आंकड़े के हिसाब से देश की बिजली खपत में कोई इजाफा नहीं देखा गया है.
केंद्रीय विद्युत मंत्रालय की ओर से इकट्ठा किए गए आकड़ों के मुताबिक 2014-15 और 2017-18 के दौरान औसतन 5.66 फीसदी विद्युत का इजाफा देखा गया है जबकि 2010-11 और 2013-14 के बीच ये आकड़ा औसतन 5.9 फीसदी का था. और सरकार का ये दावा तब है जब हाल के सालों में थर्मल पावर प्लांट का परिचालन ऐतिहासिक तौर पर सबसे निम्न स्तर पर रहा है.
इतने बड़े पैमाने पर भारत के ग्रामीण इलाकों का विद्युतीकरण होने के बावजूद बिजली की खपत में इजाफा क्यों नहीं हुआ, इसका जवाब सरकार ने नहीं दिया है. सरकार के मुताबिक उस गांव का विद्युतीकरण हुआ माना जाता है जहां बिजली पहुंचने की आधारभूत संरचना मौजूद है और 10 फीसदी घरों और सार्वजनिक जगहों पर बिजली का क्नेक्शन है.
अगर आप इस परिभाषा के मुताबिक देखे तो विद्युतीकरण हो रखे एक गांव में बिजली तो पहुंच चुकी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गांव के सभी घरों में बिजली का कनेक्शन हो.
हालांकि कोई सरकार के दावें पर कैसे सवाल खड़ा सकता है, अगर इन दावों को सही भी मान लिया जाए तो गांव के विद्युतीकरण से गांववालों को कोई फायदा तो हुआ नहीं है क्योंकि विद्युत आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता की हालत बनी हुई है. अगर इन्हें 24 घंटे बिजली दी भी जाती है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि गांव वाले इस बिजली का उपभोग करने में सक्षम होंगे.
मोदी सरकार की महत्वकांक्षी प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना या सौभाग्य योजना के तहत गरीब घरों को मुफ्त में बिजली का कनेक्शन दिया जाना था लेकिन बिजली की खपत जितना मीटर में उठे उसके हिसाब से देना था. इससे आर्थिक रुप से कमजोर घर शायद ही बिजली की खपत कर पाते.)

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

1 मई, 2016 को प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इसके तहत पांच करोड़ गरीब घरों को मार्च 2019 तक एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया था.
उज्ज्वला योजना की शुरुआत के बाद एलपीजी कनेक्शन की संख्या में हालांकि बड़ा इजाफा देखा गया है. लेकिन इसके हिसाब से एलपीजी की खपत उतनी नहीं हुई है.
पिछले दो सालों में उज्ज्वला योजना के तहत 3.6 करोड़ एलपीजी कनेक्शन जारी किए गए हैं लेकिन इसका असर एलपीजी की खपत पर नहीं दिखता है. एलपीजी की खपत में वृद्धि दर उतनी ही बनी हुई है जितनी योजना शुरु होने से पहले थी.
एलपीजी की खपत में 2014-15 और 1015-16 के बीच 10.5 फीसदी और 9 फीसदी का इजाफा देखा गया है वहीं उज्ज्वला योजना शुरू होने के बाद 2016-17 और 2017-18 में एलपीजी की खपत में वृद्धि दर 10.1 फीसदी और 8 फीसदी देखी गई है जो कि योजना शुरू होने से पहले के बराबर ही है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि उज्ज्वला योजना के तहत जिन लोगों ने कनेक्शन लिया है वो उस तरह से गैस खत्म होने के बाद एलपीजी भरवाने दोबारा नहीं आ रहे हैं जिसतरह से आम एलपीजी उपभोक्ता भरवाते हैं.
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी यह बात मानी है कि उज्ज्वला योजना के तहत कनेक्शन लेने वालों में प्रति व्यक्ति सालाना खपत औसतन 4.32 सिलेंडरों की ही है.
उज्ज्वला योजना के तहत लाभ लेने वालों को सुरक्षा जमा राशि नहीं देनी होती है और एलपीजी कनेक्शन के लिए न ही कोई दूसरा अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता है.
उनके पास चूल्हे और पहली बार गैस भरवाने का भुगतान किश्तों में करने का विकल्प भी है. हालांकि दूसरे बार से कोई छूट नहीं मिलती है.
विशेषज्ञों का मानना है कि एक बार एलपीजी भरवाने का खर्च लगभग 600 से ऊपर आता है. इस क़ीमत पर एलपीजी लेना गरीबों के लिए कोई आसान काम नहीं है. उन्हें खाना पकाने के लिए इससे कहीं सस्ता मिट्टी का तेल और जलावन मिल जाता है.
अगर उज्ज्वला योजना का लाभार्थी को लोन लेता है, तब एलपीजी चूल्हे और सिलेंडर दोनों की क़ीमत ऑइल मार्केटिंग कंपनी (ओएमसी) द्वारा हर रिफिल के बाद लाभार्थी को मिलने वाली सब्सिडी की रकम से मासिक किश्तों में सब्सिडी से ली जाती है.
इंडियन ऑयल के मुताबिक करीब 70 फीसदी लाभार्थियों ने एलपीजी चूल्हा और पहली बार गैस भरवाने के शुल्क के लिए ओएमसी से ब्याज रहित लोन लिया है. योजना के तहत हर बार गैस भरवाने पर सब्सिडी के तौर पर कटने वाली रकम से इस लोन को चुकाया जाता है. इसलिए 70 फीसदी उज्ज्वला योजना के लाभार्थी बाज़ार भाव पर सिलेंडर खरीदते हैं जब तक उनका लोन चुकता नहीं हो जाता है.

प्रधानमंत्री जनधन योजना

प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 31.6 करोड़ बैंक खाते अब तक खुल चुके हैं. इन खातों में कुल मिलाकर 27 मई तक 81,203.59 करोड़ रुपये जमा है.
हालांकि हाल ही में संसद में वित्त राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला ने बताया है कि इसमें से करीब 20 फीसदी खाते निष्क्रिय पड़े हुए हैं. और 1.9 फीसदी खाते बंद हो चुके हैं.
यह दिखाता है कि ग्राहक अपने खातों को सक्रिय रखने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. शिवप्रताप शुक्ला ने राज्यसभा में लिखित जवाब  में बताया कि करीब 31.20 करोड़ खाते जिनमें कुल 75,000 करोड़ धन राशि जमा है, फरवरी 2018 तक खुल गए थे. इनमें से 25.18 करोड़ (81 फीसदी) खाते सक्रिय थे.
उन्होंने आगे बताया कि फरवरी 2018 तक करीब 59 लाख जन धन खाते बंद हो चुके थे.
उनका जवाब था, ‘जन धन खाते ग्राहकों के अनुरोध पर बंद किए गए हैं. कुछ जन धन खाते ग्राहकों के अनुरोध पर साधारण बचत खातों में तब्दील करवाने की वजह से बंद हुए हैं. कुछ मामलों में ये खाते इसलिए बंद करवाए गए हैं क्योंकि एक ही बैंक में एक आदमी के कई खाते पहले से थे.’
इसबीच वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि पिछले साल भारत में आधे से अधिक बैंक खाते निष्क्रिय रहे हैं.
वित्तीय समावेशन को मापने वाला ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस 2017 और वर्ल्ड बैंक की ओर से जारी फिनटेक रिवॉल्यूशन के मुताबिक, ‘दुनिया भर में 13 फीसदी वयस्क और 20 फीसदी खाताधारियों के पास निष्क्रिय खाता है जिसमें पिछले 12 महीने से कोई पैसा न जमा किया जा रहा है और न ही निकाला जा रहा है और न ही किसी डिजिटल तरीके से ही उसमें कोई लेन-देन हो रहा है.’
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भारत में निष्क्रिय खातों की संख्या 48 फीसदी है जो कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है. ये विकासशील देशों के औसत आंकड़े 25 फीसदी से लगभग दोगुना है.
वर्ल्ड बैंक के आंकड़ें मोदी सरकार के इस दावे को धत्ता बताते हैं जो जन धन योजना को वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताता है.
नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा के बाद से जन धन खातों में जमा राशि में इजाफा हुआ है. सरकारी आंकड़ो के मुताबिक नवंबर 2016 के आखिर में इन खातों में जमा राशि 74,000 करोड़ से ज्यादा हो गई थी जबकि इसी महीने की शुरुआत में यह जमा राशि करीब 45,300 करोड़ रुपये थी.
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों ने बेकार हो गए 500 और 1000 के नोट को अपने बैंक खातों में जमा करवाया था. इसके बाद इन खातों में जमा राशि में गिरावट आ गई और मार्च 2017 के बाद से फिर से इसमें बढ़ोतरी शुरू हुई.
दिसंबर 2017 में 73,878.73 करोड़ से बढ़कर फरवरी 2018 में ये 75,572 करोड़ की राशि तक पहुंचा और अब 80,000 करोड़ की राशि को पार कर गया है. वित्तीय भागीदारी में शामिल होने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है.
खातोंधारकों की संख्या 11 अप्रैल तक 2017 की शुरुआत में रहे 26.5 करोड़ से बढ़कर 31.45 करोड़ हो चुकी थी. 9 नवंबर 2016 तक जब नोटबंदी की घोषणा हुई थी, खातों की संख्या 25.51 फीसदी थी.

प्रधानमंत्री आवास योजना

सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक पांच करोड़ नए घर बनाने का लक्ष्य रखा है जिनमें से तीन करोड़ ग्रामीण और शहर के बाहरी इलाकों में बनाए जाएंगे.
लेकिन इस योजना पर बहुत ही धीमी गति से काम बढ़ रहा है. शहरी आबादी के लिए दो करोड़ मकान बनाने के लक्ष्य में से दिसंबर 2017 के आखिरी तक सिर्फ 4.13 लाख मकान ही तैयार हो पाए थे और 15.65 लाख मकान निर्माणाधीन थे.
शहरी आवास मंत्रालय ने 2018-19 में 26 लाख, 2019-20 में 26 लाख, 2020-21 में 30 लाख और 2021-22 में 29.8 लाख मकान बनाने की योजना बनाई हुई है. हालांकि निर्माण की धीमी गति को देखते हुए यह लक्ष्य एक चुनौती की तरह लग रहा है. उदाहरण के लिए 2016-17 में सिर्फ 1.49 लाख ही मकान तैयार हो पाए थे जबकि 32.6 लाख का लक्ष्य रखा गया था.
गांव में मकान बनाने की योजना के तहत सिर्फ 16 लाख मकान ही बने हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिए इन दोनों ही योजनाओं की रफ्तार उल्लेखनीय गति से बढ़ानी पड़ेगी.

बढ़ते लोन डिफॉल्ट

इस बीच इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने लोन नहीं चुकता करने के मामले में आई बढ़ोतरी की ओर ध्यान दिलाया है. एजेंसी ने 2018 में भी इसे जारी रहने की आशंका बताई है. हाल ही में जारी रिपोर्ट में मूडीज और इसके भारतीय अंग आईसीआरए ने कहा है कि प्रतिस्पर्धा का दबाव और स्व-नियोजन के ऊपर ध्यान देने की वजह से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा है.
आईसीआरए के वित्तीय प्रमुख विभोर मित्तल ने कहा है, ‘परंपरागत हाउसिंग क्षेत्र में स्थायित्व बने रहने की संभावना है जबकि किफायती हाउसिंग क्षेत्र में 2018 में अनियमितता और बढ़ सकती है.’
संपत्ति-समर्थित सुरक्षा (एबीएस) के ऊपर लिखी गई इस रिपोर्ट में कहा है कि किफायती हाउसिंग क्षेत्र में कुल नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में सितंबर 2017 तक 1.8 फीसदी की वृद्धि हुई है.
कम रकम वाले लोन के मामले में बढ़ते तनाव की वजहों पर मित्तल ने कहा है, ‘बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा से इस पर फर्क पड़ेगा. परिणामस्वरूप लोन देने के मापदंडों में गिरावट आएगी और स्व-नियोजित क्षेत्रों में अधिक मात्रा में लोन दिए जाएंगे.”
स्व-रोजगार वाले लोन धारकों को हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की ओर से मिलने वाले लोन में 30 फीसदी का इजाफा हुआ है. चार साल पहले तक ये आंकड़ा 20 फीसदी का ठहरता था. सरकार की ओर से किफायती हाउसिंग को प्रोत्साहन देने के बाद ये बदलाव आया है. एक दूसरी रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने लोन चुकाने को लेकर अनियमितता के मामलों में वृद्धि की चेतावनी दे चुकी है.

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

महिला और दलित उद्यमियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने को लेकर शुरू की गई मुद्रा योजना का खूब जोर-शोर से प्रचार किया गया और कहा गया कि ये मोदी सरकार की नौकरी पैदा करने की बड़ी कामयाब पहल है. हालांकि औसत कर्ज लेने की रकम को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि वास्तविकता कुछ और ही है.
2015 में शुरू की गई इस योजना के तहत 50,000 तक, 5 लाख तक और 5 लाख से लेकर 10 लाख तक लोन दिए जाते हैं.
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत करीब छह लाख करोड़ रुपये 12 करोड़ लोगों के बीच दिए गए हैं. हाल ही में द वायर की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक पांच लाख से ज्यादा का लोन लेने वालों, जिससे कि वाकई में रोजगार किया जा सकता है, की संख्या बहुत ही कम है. यह अब तक योजना के तहत दिए गए लोन का सिर्फ 1.3 फीसदी ही है. ज्यादातर लोन 50,000 से कम या फिर  50,000  और 5 लाख के बीच के है.
मुद्रा योजना के तहत 2017-18 में औसतन 52,700 रुपये लोन के तौर पर लिए गए हैं.
मोदी ने 2014 के आम चुनावों के प्रचार के दौरान नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन सत्ता में आते उन्होंने पलटी मारते हुए कहा कि वो युवाओं को नौकरी देने की बजाए उन्हें नौकरी सृजित करने वाला बनाना चाहते हैं. लेकिन अर्थशास्त्री मोदी सरकार के इस यू-टर्न से सहमत नहीं हैं. वे इसे एक मुद्दे को भटकाने वाली चाल के रूप में देखते हैं. इस तरह के लोन बहुत कम समय के  लिए रोजगार तो पैदा कर सकते हैं लेकिन पूर्ण-कालिक रोजगार नहीं.
मुद्रा योजना के तहत मिलने वाले लोन बैंकों के लिहाज से जोखिम भरे होते हैं क्योंकि वो इसके एवज में कुछ गिरवी नहीं रखते हैं. किसी भी गड़बड़ी की हालत में पैसा वापस निकालने के लिए बैंक ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं. इस योजना के तहत दिए जाने वाले लोन का 55 फीसदी रकम सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक की है.
सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों की हालत नहीं चुकाए गए लोन की वजह से पहले से ही खराब है. अगर मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन की भी यही स्थिति रही तो ये सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के एनपीए में इजाफा कर सकती है.

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

प्रधानमंत्री ने जुलाई 2015 में 24 लाख लोगों को पहले चरण में प्रशिक्षित करने के कदम के साथ इस योजना की शुरुआत की थी. हालांकि भूमिका और जिम्मेदारियों को लेकर हुई गड़बड़ी ने इस योजना को परवान नहीं चढ़ने दिया और राजीव प्रताप रुडी के हाथ से मंत्रालय निकल गया. उन्हें पिछले सितंबर में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
पहले चरण का प्रशिक्षण आसान था. इसमें सभी प्रशिक्षुओं को 5000-12,000 रुपये देने थे. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल (एनएसडीसी) पहले चरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया. इसने 18 लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया और अतिरिक्त 12 लाख लोगों को प्रमाणित भी किया.
हालांकि 2016 में शुरू किए गए दूसरे चरण के लक्ष्य जिसके तहत 2020 तक एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करना है, सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. दूसरे चरण के तहत 60 लाख युवाओं को नए सिरे प्रशिक्षित करना था और 40 लाख युवाओं को ‘रिकॉगनिशन ऑफ प्रायर लर्निंग (आरपीएल) प्रोग्राम’ के लिए प्रमाणित करना था
श्रम और रोजगार मंत्रालय में सामान्य रोजगार और प्रशिक्षण के पूर्व महानिदेशक शारदा प्रसाद की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय कमेटी ने पाया है कि यह योजना बहुत बुरी तरह से लागू की जा रही है और इसने अवास्तविक लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं.
कमेटी ने पिछले साल के अप्रैल में जारी की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हर कोई युवाओं को रोजगार देने या स्थानीय उद्योगों की जरुरतों पर ध्यान दिए बिना सिर्फ आकड़ों के पीछे भाग रहा है.
आंकड़े बताते हैं कि नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल ने सितंबर 2017 तक सिर्फ छह लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया है और सिर्फ 72,858 प्रशिक्षित युवाओं को 12 फीसदी की दर से काम दे सका है. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पहला चरण) के तहत रोजगार देने की दर सिर्फ 18 फीसदी रही है.
शारदा प्रसाद के पैनल ने पाया है कि नेशनल स्किल डेवलपमेंट  प्रोग्राम 2015 के तहत 40 करोड़ युवाओं को स्किल यानी कौशल सिखाने की योजना बहुत बड़ी, ग़ैर-जरूरी और असाध्

Friday, June 1, 2018

लालू प्रसाद यादव विज्ञान ही नही बल्कि इतिहास, भूगोल,संस्कृत,शाश्त्र ओर गणित भी है। बाबुल इनायत

उपचुनाव में जीत के बाद तेजस्वी यादव ने कहा लालू एक विचार है विज्ञान है। इस पर विपक्षी कुछ कहे ना कहे लेकिन आजतक चैनल की एक एंकर मोहतरमा को यह सुन बहुत पीड़ा हुई और उन्हीं के ग्रुप के पोर्टल के एक कोई द्विवेदी महोदय है (हो सकता है ज्ञान उसको शायद एक वेद का भी ना हो लेकिन है तो जन्मजात द्विवेदी) उसको भी तकलीफ के साथ हंसी आ रही थी। तो सुनिए......
● लालू विज्ञान है क्योंकि उन्होंने इन जैसों के मनोविज्ञान को ध्वस्त ही नहीं अपितु चकनाचूर किया।
● लालू विज्ञान है क्योंकि उन्होंने इनके सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व को समाप्त किया।
● लालू विज्ञान है क्योंकि 25 वर्ष से परेशान और प्रताड़ित करने के बावजूद यह शख्स अब भी रीढ़ की हड्डी के दम पर खड़ा होकर, लट्ठ गाड़कर इनकी आँखों में आँखों और मुँह में उंगली डाल दांत गिनने की काबिलियत रखता है।
● लालू विज्ञान है क्योंकि तथाकथित भ्रष्टाचारी होने के बावजूद भी वह विगत 28 वर्ष में से 22 वर्ष से राजा बना बैठा है और कोई माई का लाल उसका बाल भी बांका नहीं कर सका है।
● लालू विज्ञान है क्योंकि देश की तमाम बड़ी से बड़ी जांच एजेंसीया पिछले 22 साल से उनके घर आँगन, खेत-खलिहान से लेकर रसोई और बेड को खोद और खंगाल चुकी है. पूछताछ कर चुकी है, गिरफ्तार कर चुकी है लेकिन इस गुदड़ी के लाल का कुछ नहीं बिगाड़ सकी।
● लालू विज्ञान है क्योंकि उसे गिरफ्तार करने के लिए सेना बुलाई जाती है।
● लालू विज्ञान है क्योंकि अबतक स्वयं घोषित मेरिट वाले यह नहीं जान पाए है कि गंवार, ग्वाला, जोकर, देहाती और अवयस्थित होने के बावजूद ये सभी मेरिटधारी मिलकर भी आरक्षण लागु करवाने वाले इस विचार को ख़त्म कर सकें।
● लालू विज्ञान है क्योंकि इतना बड़ा परिवार होने के बावजूद, जेल जाने के बावजूद, मानसिक तनाव झेलने के बावजूद, CBI-ED-IT की धमकियों के बावजूद, मनुवादी पूर्वाग्रह से ग्रस्त मीडिया के कुछ लोगों के नकारात्मक प्रचार के बावजूद, अनेकों बीमारियाँ होने के बावजूद, अपने चेलों और सहयोगियों से धोखा खाने के बावजूद, सबसे बड़ी पार्टी होने और एक अवसरवादी द्वारा खंजर घोपने के बावजूद, अपने सभी बेटों-बेटियों और रिश्तेदारों पर केस होने के बावजूद, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, राजनीतिक प्रताड़ना के बावजूद यह माटी का लाल, शेरों का शेर आज भी अकेले जातिवादी संघ और उनके अनेकों संगठनों से अकेले बहादुरी से लड़ रहा है।
● लालू विज्ञान है क्योंकि जिस आडवानी को देश में कोई गिरफ्तार नहीं कर पाया उसे इस भैंस चराने वाले ग्वाल ने नकेल डाल जेल में डाल दिया था।
● लालू विज्ञान है क्योंकि इनके 15 वर्ष के राज में कभी कोई दंगा नहीं हुआ।
● लालू विज्ञान है क्योंकि इन्होने मात्र कुछ वर्ष में बिहार में अबतक की सबसे ज़्यादा 7 यूनिवर्सिटी खुलवाई।
● लालू विज्ञान है क्योंकि इन्होने आजादी के बाद रेलवे को सबसे ज्यादा मुनाफा दिया। उनकी कार्यशैली और प्रबंधन गुणों को लेकर विश्व के प्रतिष्ठित Management Institutes ने research ही नहीं अपितु इन्हें व्याख्यान देने के लिए बुलाया।
● लालू विज्ञान है क्योंकि जिन वंचितों, उपेक्षितों और उत्पीड़ितों को कोई चारपाई पर नहीं बैठाता था वो उन्हें सरकारी कार्यालयों में देखकर उठने ही नहीं लगा बल्कि उन्हें कुर्सी देने लगा।
● लालू विज्ञान है कि उन्होंने जूते सिलने वाले को, पत्थर तोडने वाली को, चूहे पकड़ने वाले को, मछली पकड़ने वाले को, ताड़ी तोड़ने वाले को, मिट्ठी खोदने वाले को, कूड़ा बीनने वाले को, गाय-भैंस चराने वाले को, खेतीबाड़ी और पशुपालन करने वाले को, सभी मेहनतशील और कमेरे वर्गों के लोगों को जीता-जिताकर पंचायतों से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और राज्यसभा भेजा और भेज रहे है।
लिखने को बहुत है लेकिन कितना लिखे बस इतना ही समझ लीजिये..
और हाँ अंत में लालू विज्ञान ही नहीं बल्कि इतिहास, भूगोल, संस्कृत, शास्त्र और गणित भी है. दिल्ली के वातानुकूलित केबिनों में बैठकर आप उस विज्ञान को ना समझ सकते है ना देख सकते है. उसके लिए आपको गाँव की पगडंडियों और खेल-खलिहानों की खाक छाननी पड़ेगी।
बाबुल इनायत
9507860937
सोशल मीडिया प्रभारी,राष्ट्रीय जनता दल अररिया बिहार

नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...