उन्हें लालू आखिर अखरता क्यों है ???
वजह दरअसल ये है :
जिस बिहार में लालू यादव के पहले विधानसभा और लोकसभा में आधे से ज्यादे अगड़ी जातियों का बोलबाला था, लालू यादव ने उसे आधे से कम पर लाकर खड़ा कर दिया। नहीं समझें ?
जिस बिहार में लालू यादव के पहले विधानसभा और लोकसभा में आधे से ज्यादे अगड़ी जातियों का बोलबाला था, लालू यादव ने उसे आधे से कम पर लाकर खड़ा कर दिया। नहीं समझें ?
तो आईए आंकडा देखिए -
वर्ष 1980 और 1985 में उच्च जाति के विधायकों की संख्या 118 और 105 थी। वहीं पिछड़ी जाति के विधयकों की संख्या 96 और 90 थी।
वर्ष 1980 और 1985 में उच्च जाति के विधायकों की संख्या 118 और 105 थी। वहीं पिछड़ी जाति के विधयकों की संख्या 96 और 90 थी।
लेकिन, जब लालू का आगमन हुआ, तो इस उच्च जातियों के एकाधिकार का मानों पतन शुरू हो गया !
देखिए कैसे :-
1990 में लालुजी की सरकार बनी तो उस वक़्त पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या 117 हो गई और उच्च जाति के विधायकों की संख्या 105 पर आ गई।
यानी कि अपने आने के साथ ही पहली बार बिहार के इतिहास में पहली बार बिहार की बहुसंख्य आबादी के पिछड़ों की सरकार बहुमत में आयी।
1990 में लालुजी की सरकार बनी तो उस वक़्त पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या 117 हो गई और उच्च जाति के विधायकों की संख्या 105 पर आ गई।
यानी कि अपने आने के साथ ही पहली बार बिहार के इतिहास में पहली बार बिहार की बहुसंख्य आबादी के पिछड़ों की सरकार बहुमत में आयी।
अब ये कारवाँ थमा नहीं उल्टा बढ़ता गया। और साथ ही लालू यादव उच्च जातियों के आंखों की चुभन बनता गया।
सामाजिक चेतना इतनी जग चुकी थी लालुजी की दूसरी बार सरकार 1995 में दूसरी बार सरकार बनीं तो उच्च जातियों के विधायकों की संख्या मात्र 56 होके रह गई, और पिछड़ी जातियों के विधयक की संख्या 161 पहुंच गई !
सिलसिला ऐसा शुरू हुआ लालू युग से, कि लालू बाद उच्च जाति कभी बिहार की गद्दी पर बैठ नहीं पाई।
देखा जाए तो वोजि लालू ही हैं जिन्होंने "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" को लागू करके दिखा दिया !!
आपकी दीर्घायु हों लालुजी।
स्वाभिमान जगाने वाले को नेता ही कहते हैं।
आप नेता हैं और रहेंगे ! ~
स्वाभिमान जगाने वाले को नेता ही कहते हैं।
आप नेता हैं और रहेंगे ! ~
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