Monday, April 30, 2018

खुल गया राजः RSS की गवाही से हुई थी भगत सिंह, राजगुरू, और सुखदेव को फांसी

खुल गया राजः RSS की गवाही से हुई थी भगत सिंह, राजगुरू, और सुखदेव को फांसी

 पाकिस्तान के लाहौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर अनुरोध किया गया कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 83 साल बाद उनकी बेगुनाही साबित करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज हत्या के मामले में एक पूर्ण पीठ जल्द सुनवाई करे। इस याचिका पर आज के ही दिन सुनवाई होनी है।
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने यहां उच्च न्यायालय में एक आवेदन दाखिल कर मामले में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। कुरैशी ने अपनी याचिका में कहा कि भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी।
ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सांडर्स की कथित हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। ब्रिटिश शासन ने 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दे दी थी। उन पर औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोपों के तहत मुकदमा चला था।
कुरैशी ने कहा कि सिंह को पहले आजीवन कैद की सजा सुनाई गई, लेकिन लेकिन बाद में एक और झूठे गढ़े मामले में उन्हें मौत की सजा सुना दी गई। उन्होंने कहा कि भगत सिंह आज भी उपमहाद्वीप में न केवल सिखों के लिए बल्कि मुसलमानों के लिए भी सम्मानित हैं और पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना दो बार उनको श्रृद्धान्जली दे चुके हैं।
कुरैशी ने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का विषय है और एक पूर्ण पीठ को इस मामले में समाधान करना चाहिए। उन्होंने पुनर्विचार के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए शहीद भगत सिंह की सजा रद्द करने की भी गुहार लगाई और कहा कि सरकार को भगत सिंह को सरकारी पुरस्कार से सम्मानित करना चाहिये ।
यह समाचार बताने का अर्थ यह है कि अपने पुर्वजों और देश की आज़ादी के नायकों का सदैव सम्मान ही देश की पहचान होती है , बात तारीफ की नहीं है पर यह सच है कि बँटवारे की तमाम कटुता और आज के दुश्मनी के संबंधों के बावजूद भी लाहौर में शहीद भगतसिंह जी से जुड़ी स्मृतियाँ अभी तक वहाँ की धरोहर है और सम्मान पाती रही हैं जबकि इसी भारत में एक गिरोह के द्वारा “महात्मा गांधी” के साथ किया जाता रहा बर्ताव कैसा रहा है यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
किसी ने यह पता करने की कोशिश की कि देश की आजादी के लिए शहीद हो जाने वालों के विरुद्ध अंग्रेजों के आदेश पर उनके लिए गवाही देने वाले लोग कौन थे ? और उनके तथा उनके परिवार का आज़ादी के पहले और आज के दौर में क्या हाल है और वह किस स्थिति में हैं।
जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ. शोभा सिंह. ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल! दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को ब्रिटिश सरकार द्वारा न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनाॅट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली ।आज भी श्यामली में शादीलाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है ।
सर शादीलाल और सर शोभा सिंह के प्रति भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा थी लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया । शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर ले गए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
शोभा सिंह खुशनसीब रहा । उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी मिला। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और उनको सर आखों पर बिठाया संघी मुखपत्र “पांचजन्य” ने जहाँ से उन्हों विधिवत पत्रकारिता प्रारंभ की और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा व्यवस्था करता है ।
आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंभा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था । खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।
बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था।हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।
और भी गवाह निम्न लिखित थे।
  1. दीवान चन्द फ़ोगाट
  2. जीवन लाल
  3. नवीन जिंदल की बहन के पति का दादा
  4. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा
दीवान चन्द फोगाट D.L.F. कम्पनी का founder था इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में बनाई थी इसकी एक ही इकलौती बेटी थी जो कि के•पी• सिंह को ब्याही और वो के•पी •सिंह मालिक बन गये DLF का। अब के•पी•सिंह की भी इकलौती बेटी ही है जो कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है। अब ये DLF का मालिक बनेगे। जीवनलाल मशहूर एटलस कम्पनी का मालिक था। इन्हीं की गवाही के कारण 14 फरवरी 1931 को भगतसिंह व अन्य को फांसी की सजा सुनाई गई।

मजदुर दिवस

मज़दूर दिवस की सद्कामनाएँ !
"कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा, नया ज़माना आएगा ।"
The worker will rule, the looter will have to go, Soon there will be a new dawn.
श्रमिक दिवस पर पेश है मेरे दिल के बेहद क़रीब साहिर की हर दौर में प्रासंगिक एक बेहतरीन रचना "मादाम" :
आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम ?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे ।
नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
मुफलिसी हिस्स-ए-लताफत को मिटा देती है
भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती ।
लोग कहते हैं तो लोगों पे ताज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज़्ज़त कैसी
लोग कहते हैं, मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिए ग़रीबो में शराफत कैसी ?
नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा
जब हमें जीस्त के अदवार परखने होंगे
अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम
हमको ताज़ीम के मेआर परखने होंगे ।
हम ने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन
हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िया बख्शी है
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बख्शी है ।
लेकिन इन तल्ख मुबाहिस से भला क्या हासिल ?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे ।
वजह-ए-बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ !

Sunday, April 29, 2018

Red Fort


“हनक सत्ता की सच सुनने की आदत बेच देती है,
हया को, शर्म को आखिर सियासत बेच देती है,
निकम्मेपन की बेशर्मी अगर आंखों पे चढ़ जाए,
तो फिर औलाद, “पुरखों की विरासत” बेच देती है!”
#RedFort

Sunday, April 15, 2018

मैं बुराई के ख़िलाफ़ आवाज़ सिर्फ इसलिए नहीं उठाता कि ये बुराई कल को मुझे भी प्रभावित कर सकता है।
मैं बुराई के ख़िलाफ़ इसलिए होता हूँ कि मैं एक अच्छा समाज देखना चाहता हूँ....

 ये जानते हुए कि बुराई रहित समाज नामुमकिन है मैं आवाज़ उठाता हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ मेरे आसपास का समाज ऐसा हो जहाँ मैं चैन व सुकून से जी सकूँ।
हाँ, मुझसे नहीं जीया जाता इस समाज में जहाँ धर्म, जाति, वर्ग, क्षेत्र, लिंग आदि के नाम पर शोषण के उदाहरण सेट किए जाते हैं, लेकिन मैं मर नहीं सकता।
 क्योंकि कहीं न कहीं मैं भी मर जाने को हार मान लेना मानता हूँ और हार मानना ही होता तो बहुत पहले मान लेता...

मुझे जीतना है और जीत न भी सका तो आख़िरी वक़्त तक कोशिश करता रहूँगा और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपनी पूरी ऊर्जा लगाता रहूंगा।
मेरा "अच्छा समाज" कोई Utopia, कोई कल्पनालोक बन कर नहीं रह जाएगा। मुझे यक़ीन है कुछ साथी दृढ़ निश्चय से इस सफर में हमारे साथ हैं हम उस अच्छे समाज को हक़ीक़त में बदलने की हर वो कोशिश करूँगा जो कर सकते हैं।

Saturday, April 14, 2018

15 अप्रैल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ – Important events of April 15

15 अप्रैल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ – Important events of April 15

  • फ्रांस ने 1689 में स्पेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
  • अमेरिका में 1817 में बधिर बच्चों के लिए पहला स्कूल खोला गया।
  • बाल गंगाधर तिलक ने 1895 में रायगढ़ किले में शिवाजी उत्सव का उद्घाटन किया।
  • डाईबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए 1923 में इंन्सुलिन बाजार में उपलब्ध हुआ।
  • तत्कालीन सोवियत संघ और स्विट्जरलैंड राजनयिक संबंध बनाने पर 1927 में सहमत हुए।
  • हिमाचल प्रदेश राज्य की स्थापना 1948 में आज ही के दिन हुई।
  • अमेरिका ने 1955 में नेवादा परीक्षण स्थल पर परमाणु परीक्षण किया।
  • भारत सहित 109 देशों द्वारा 1994 में ‘गैट’ समझौते की स्वीकृति।
  • थम्पी गुरु के नाम से प्रसिद्ध फ़्रेडरिक लेंज का 1998 में निधन।
  • आतंकवाद से निपटने के लिए सहयोग के आहवान के साथ “जी -77 शिखर सम्मेलन” सन 2000 में हवाना में सम्पन्न।
  • ब्रिटेन में आयरिश रिपब्लिकन आर्मी ने 2003 में हथियार डाल देने का निर्णय लिया।
  • राजीव गांधी हत्याकांड से जुड़े लिट्टे उग्रवादी वी. मुरलीधरन की 2004 में कोलम्बो में हत्या की गयी।
  • इंटरपोल ने 2006 के जकार्ता सम्मेलन में एंटी करप्शन एकेडमी के गठन का प्रस्ताव सुझाया।
  • पाकिस्तान की एक जेल पर 2012 में हुए हमले के बाद 400 आतंकवादी फरार हुए।
  • इराक में 2013 में हुए बम विस्फोट से तक़रीबन 35 लोगों की जान गयी और 160 घायल हुए।

15 अप्रॅल को जन्मे व्यक्ति – Born on 15 April

  • 1452 में इटलीवासी, महान चित्रकार लिओनार्दो दा विंचीका जन्म।
  • सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक का 1469 में जन्म हुआ।
  • 1563 में सिक्खों के पाँचवें गुरु गुरु अर्जन देव का जन्म।
  • 1865 में खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार अयोध्यासिंह उपाध्याय का जन्म।
  • 1940 में भारत के प्रसिद्ध सारंगी वादक और शास्त्रीय गायक- सुल्तान ख़ान का जन्म।
  • 1960 में मध्य प्रदेश की राजनीति में ‘भारतीय जनता पार्टी’ के प्रसिद्ध नेता नरोत्तम मिश्रा का जन्म।
  • 1972 में बालीवुड अभिनेत्री, क्रिकेट ग्लैमर और फैशन की मूर्ति मंदिरा बेदी का जन्म।
15 अप्रॅल को हुए निधन – Died on 15 April
  • चित्रकार नंदलाल बोस का 1966 में निधन।
  • हैजा के जीवाणु पर शोध कार्य करने वाले भारतीय वैज्ञानिक शंभुनाथ डे का 1985 में निधन।
  • थम्पी गुरु के नाम से प्रसिद्ध फ़्रेडरिक लेंज का निधन 1998 को हुआ था।
15 अप्रॅल के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव – Important events and festivities of 15 April
  • रेल सप्ताह
  • फ़ायर सर्विस सप्ताह
बाबुल इनायत
9507860937

Friday, April 6, 2018

क्या आप जानते है इंटरनेट का आविष्कार कब, कहां, किसने और क्यों किया?


Internet Invention Information Hindi.


Internet Invention Information Hindiहालांकि वर्ल्ड वाइड वेब को शुरू में एक व्यक्ति ने आविष्कार किया था, लेकिन इंटरनेट की उत्पत्ति में कई व्यक्तियों और ग्रुप का प्रयास था। इसका जन्म हमें शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और यूएसएसआर के बीच टेक्नोलॉजी के अत्यंत प्रतिस्पर्धी यूग में वापस ले जाता है।
सोवियत संघ ने 4 अक्टूबर, 1957 को Sputnik 1 उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा। आंशिक रूप से इसकी प्रतिक्रिया में, अमेरिकी सरकार ने 1958 में Advanced Research Project Agency को बनाया, जिसे आज DARPA -डिफेंस Defense Advanced Research Projects Agency के रूप में जाना जाता है। इस एजेंसी का विशिष्ट मिशन था Sputnik 1 उपग्रह के प्रक्षेपण के टेक्नोलॉजी को रोकना।

J C R Licklider-Who invented the internet
J C R Licklider

ऐसे प्रयासों के समन्वय के लिए, विभिन्न विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं के बीच डेटा का आदान-प्रदान करने के लिए एक फास्‍ट तरीके कि जरूरत थी। इसके लिए J. C. R. Licklider ने इंटरनेट के सैद्धांतिक आधार के लिए “Intergalactic Computer Network” बनाया। उनका विचार एक ऐसा नेटवर्क बनाना था, जहां कई अलग-अलग कंप्यूटर सिस्टम एक दूसरे के साथ आपस में इस तरह से कनेक्‍ट होंगे, जो डेटा का शीघ्र गती से आदान-प्रदान कर सकेंगे।
लॉरेंस जी रॉबर्ट्स के 1966 पब्लिकेशन “Towards a Cooperative Network of Time-Shared Computers” से ARPANET (Advanced Research Projects Agency Network) कि आइडिया का जन्‍म हुआ।
जनवरी 1969 में, Advanced Research Projects Agency of the Department of Defense (ARPA) ने एक कम्युनिकेशन नेटवर्क के डिजाइन और निर्माण के लिए बोल्ट, बेरनेक और न्यूमैन (बीबीएन) को कॉन्ट्रैक्ट दिया।
सन 1969 के अंत में ARPANET नें कैलिफोर्निया लॉस एंजिल्स (UCLA), कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के सांता बारबरा (UCSB), उटाह यूनिवर्सिटी और स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (SRI) के चार नोड को कनेक्‍ट किया गया।
ARPANET-Who invented the internet
इस नेटवर्क का पहला उपयोग 29, 1969 को 10:30 बजे हुआ और यह UCLA और स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के बीच एक कम्युनिकेशन था।
परमाणु युद्ध के खतरे के साथ, एक ऐसी सिस्‍टम को विकेंद्रीकृत करने के लिए आवश्यक थी, जिसमें एक नोड नष्ट हो गया हो, तो फिर भी अन्य सभी कंप्यूटरों के बीच कम्युनिकेशन हो सके। अमेरिकी इंजीनियर पॉल बारन ने इस मुद्दे का समाधान प्रदान किया; उन्होंने एक विकेन्द्रीकृत नेटवर्क तैयार किया जो डाटा भेजने और प्राप्त करने के लिए पैकेट स्विचिंग का इस्तेमाल करता था।
कई अन्य लोगों ने एक कुशल पैकेट स्विचिंग सिस्टम के विकास में योगदान दिया, जिसमें लियोनार्ड क्लेनरॉक और डोनाल्ड डेविस शामिल थे। यदि आप “पैकेट स्विचिंग” से परिचित नहीं हैं, तो यह मूल रूप से सभी ट्रांसमिटेड डेटा को उपयुक्त-आकार वाले ब्‍लॉक में ब्रेक करता है, जिन्‍हे पैकेट कहा जाता है। इन पैकेटस् को अलग अलग मार्ग से डेस्टिनेशन तक भेजा जाता है।
Packet Switching-Who invented the internet
उदाहरण के लिए, यदि आप किसी अन्य सिस्टम से बड़ी फ़ाइल एक्सेस करना चाहते हैं, तो जब आप इस फाइल को डाउनलोड करने का प्रयास करते हैं, तब एक ही स्‍ट्रीम में पूरी फाइल भेजने के लिए लगातार कनेक्शन की आवश्यकता होती है। इसके बजाय, यह डेटा के छोटे पैकेटों में विभाजित होता है, और प्रत्येक पैकेट व्यक्तिगत रूप से अलग अलग पाथ से भेजा जाता है। जो सिस्‍टम इस फाइल को डाउनलोड करती है, वह इन पैकेटस् को एकत्रित कर दोबारा मूल पूर्ण फ़ाइल बनाता है।
1972 तक, ARPANET से कनेक्‍ट कंप्यूटरों की संख्या 23 हो गई थी और यह वह समय था, जब इलेक्ट्रॉनिक मेल (ईमेल) शब्द का इस्तेमाल पहली बार किया गया था। कंप्यूटर वैज्ञानिक रे टेमलिन्सन ने ARPANET में ई-मेल सिस्टम का इस्तेमाल किया था, जिसमें ईमेल भेजने वाले का नाम और नेटवर्क के नाम को अलग करने के लिए “@” सिंबॉल का इस्‍तेमाल किया गया।
इन डेवलपमेंट के साथ, इंजीनियरों ने अधिक नेटवर्क बनाए, जो कि X.25  और UUCP जैसे विभिन्न प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते थे। ARPANET द्वारा कम्युनिकेशन के लिए मूल प्रोटोकॉल NCP (Network Control Protocol) इस्तेमाल किया गया था।
अब एक ऐसे प्रोटोकॉल की ज़रूरत थी, जो सभी नेटवर्कों को एकजुट कर सके।
1974 में कई असफल प्रयासों के बाद, विंट सर्फ और बॉब काहन द्वारा एक पेपर प्रकाशित किया, जिसे “The Fathers Of The Internet” के रूप में भी जाना जाता है। इसका नतीजा TCP (Transmission Control Protocol) मे हुआ, जो 1978 में TCP/IP (आईपी का मतलब इंटरनेट प्रोटोकॉल) बन गया।
हाई लेवल पर TCP/IP एक सिस्‍टम है, जो यह सुनिश्चित करती है कि डेटा के पैकेटस् को भेजा और प्राप्‍त किया जा रहा है। और फिर पैकेटस् को उचित क्रम में असेंबल्ड किया जाता है, जिससे डाउनलोड किए डेटा को ओरिजनल डेटा के साथ मिलाया जाता है। इसलिए, यदि कोई पैकेट ट्रांसमिशन में खो जाता है, तो टीसीपी एक ऐसी सिस्‍टम है जो यह पता लगाती है और सुनिश्चित करती है कि गायब पैकेट पुनः प्राप्त हो और सफलतापूर्वक प्राप्त हो।
1 जनवरी, 1983 को, TCP/IP प्रोटोकॉल ARPANET के लिए विशेष कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल बन गया।
इसके साथ ही 1983 में, पॉल मोकपेट्रिस ने इंटरनेट नाम और एड्रेस पेयर पेअर के वितरित डाटाबेस का प्रस्ताव प्रस्ताव रखा, जिसे अब Domain Name System (DNS) कहा जाता है। यह वास्तव में एक डिस्ट्रिब्यूटेड “फोन बुक” है जिसमें डोमेन नेम को आईपी एड्रेस के साथ लिंक किया जाता है। इससे आप किसी भी वेब साइट के आईपी एड्रेस को टाइप करने के बजाय उसका नाम टाइप कर सकते है।
जैसे गूगल के लिए ब्राउजर में 172.217.24.132 यह आईपी टाइप करने के बजाय आप www.google.com टाइप कर सकते है।
इस सिस्‍टम के डिस्ट्रिब्यूटेड वर्जन ने इसके डिसेंट्रलाईज़ अप्रोच के लिए अनुमति दी। इससे पहले, एक सेंट्रल hosts.txt फाइल को स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट मे मेंटेन किया जाता था। इसे बाद में डाउनलोड कर अन्‍य सिस्‍टम द्वारा उपयोग किया जाता था। बेशक, 1983 तक भी, इसे मेंटेंन करना एक समस्‍या थी और डिसेंट्रलाईज़ अप्रोच कि जरूरत बढ़ रही थी।
इसकी वजह से सन 1989 में CERN (European Organization for Nuclear Research) के टिम बर्नर्स-ली ने इंटरनेट पर इनफॉर्मेशन डिस्ट्रिब्यूट करने के लिए एक सिस्‍टम डेवलप की और इसे World Wide Web नाम दिया।
इंटरनेट के साथ हाइपरटेक्स्ट सिस्टम (लिंक किए गए पेजेस) से आज कि मौजूदा सिस्‍टम बनी है।
यह वेब सर्वर और वेब ब्राउज़रों के सरल इम्प्लिमेन्टेशन को प्रदान करता है और यह एक पूरी तरह से ओपन प्लेटफार्म है, जिसमें कोई भी रॉयल्टी का भुगतान किए बिना स्वयं के सिस्टम को डेवलप कर सकता है।
यह सब करने की प्रोसेस में, बर्नर्स-ली ने URL फॉर्मेट, Hypertext Markup Language (HTML), और Hypertext Transfer Protocol (HTTP) को डेवलप किया।
इसी समय, वेब के सबसे लोकप्रिय विकल्पों में से एक, गोफर सिस्टम ने घोषणा की कि वह अब उपयोग करने के लिए फ्री नहीं होगा, और इसे वर्ल्ड वाइड वेब पर कई स्विच के साथ प्रभावी ढंग से मार डाला जाएगा।
आज, वेब इतनी लोकप्रिय है कि कई लोग अक्सर इसे इंटरनेट के रूप में सोचते हैं, हालांकि यह ऐसा मामला बिल्कुल भी नहीं है।
इसके अलावा वर्ल्ड वाइड वेब के निर्माण के दौरान, इंटरनेट के व्यावसायिक उपयोग पर लगे प्रतिबंध धीरे-धीरे हटा दिए गए, जो इस नेटवर्क की अंतिम सफलता में एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व था।
इसके बाद, 1993 में, मार्क एंड्रेसन के नेतृत्व में मोजाइक नामक वर्ल्ड वाइड वेब के लिए एक ब्राउज़र डेवलप किया गया। यह अमेरिकी सरकार की पहल और फंडिंग से डेवलप एक ग्राफिकल ब्राउज़र था।
बाबुल इनायत
+91 9507860937


Tuesday, April 3, 2018

दक्षिण पूर्व एशिया के देशों की तुलना में भारत मे पेट्रोल और डीजल की कीमतें सबसे अधिक।

दक्षिण पूर्व एशिया के देशों की तुलना में भारत मे पेट्रोल और डीजल  की कीमतें सबसे अधिक। 
बाबुल इनायत
9507860937
सोशल मीडिया प्रभारी, राजद अररिया बिहार

आरक्षण का मैं समर्थन करता हूँ। बाबुल इनायत

मैं आरक्षण समर्थक हूँ ,हमलोग दलित,आदिवासी,अतिपिछड़ा,पिछड़ा के साथ एक कतार में खड़े हैं ,इस पर आप हमसे बहस कर सकतें हैं,इस लाइन में खड़े लोगों को प्रतिनिधित्व के अवसरों की घोर कमी आज खलती है।इस पर सार्थक बात होनी चाहिए।जब तक जाती श्रेष्ठ का आरक्षण देश मे रहेगा ,आरक्षण भी रहेगा।
जिस आरक्षण की हम यहाँ बात करना चाहते हैं, वो प्रतिनिधित्व के लिये है, किसी पहचाने हुए वंचित समुदाय को तमाम सामाजिक बाधाओं से बचाकर उनको सिस्टम में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिलाने के लिये है। नौकरी देकर गरीबी हटाना इसका मकसद नहीं है, इतनी नौकरी हैं ही नहीं।
कभी सोचा है की हम क्यों पाकिस्तान के योग्यतम आदमी को अपने कोर्ट मे जज नहीं बना सकते? अगर मेरिट ही एकमात्र पैमाना है तो हमे अपनी सारी नौकरियाँ पूरे विश्व के लिये क्यों नहीं खौल देनी चाहिये? सरकारी भी और प्राइवेट भी।पर क्या फिर हमारे कथित दिमाग वाले नौकरी ले पायेंगे?
आप लोग एक उदहारण से समझिये-अब अगर संयुक्त राष्ट्र मे भारत के प्रतिनिधित्व के लिये एक पोस्ट निकलती है, तो इस बात फर्क नहीं पड़ता की भारत से चुना जाने वाला व्यक्ति अमीर है या गरीब।लेकिन उसका भारतीय होना सबसे जरूरी है।साथ ही ये भी समझने की कोशिश करें की संयुक्त राष्ट्र ने एक जॉब इसलिये नहीं निकाली थी की उसे किसी एक भारतीय की गरीबी इस जॉब से मिटानी है, बल्कि इसलिये निकाली ताकि कोई एक चुना हुआ व्यक्ति भारत की आवाज संयुक्त राष्ट्र मे रख सके।
आज 10%लोग ९०%से अधिकतर पदों पर बैठे हैं इसमे 90%आवादी वाले लोगों का प्रतिनिधित्व आप देख सकतें हैं नगण्य है।
आरक्षण का उद्देश्य ये कतई नहीं है की किसी समाज के हर व्यक्ति का कल्याण आरक्षण के ही मध्यम से होगा, बल्कि आरक्षण केवल उस वर्ग के लोगों को तरह तरह के क्षेत्रो मे प्रतिनिधित्व दिलाता है ताकि उस वर्ग के लोगों को जो भेदभाव उच्च वर्गीय कर्मियों द्वारा झेलने पड़ते हैं, उनमे कुछ कमी आ सके और वंचित वर्ग की भी आवाज़ सुनी जा सके। इसलिए आरक्षण आबादी के अनुपात मे मिलता है, ग़रीबी के नहीं।
प्रतिनिधित्व कौन करेगा ये सवाल सामने होता है, ताकी नौकरी और रोज़गार किसे दिया जाए, क्योंकि प्रतिनिधित्व से नौकरी और रोज़गार भी मिलता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो ज़्यादातर बंधु आरक्षण को सिर्फ़ नौकरी, रोज़गार और ग़रीबी हटाने का साधन मान बैठे हैं, जो की ग़लत है.
बाबुल इनायत
9507860937



नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। बाबुल इनायत

अररिया जिला सहित प्रदेश एवं देशवासियों को नववर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये, नववर्ष में संकल्पित होकर निश्चय करें कि गरीबी...