Monday, April 30, 2018

मजदुर दिवस

मज़दूर दिवस की सद्कामनाएँ !
"कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा, नया ज़माना आएगा ।"
The worker will rule, the looter will have to go, Soon there will be a new dawn.
श्रमिक दिवस पर पेश है मेरे दिल के बेहद क़रीब साहिर की हर दौर में प्रासंगिक एक बेहतरीन रचना "मादाम" :
आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम ?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे ।
नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
मुफलिसी हिस्स-ए-लताफत को मिटा देती है
भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती ।
लोग कहते हैं तो लोगों पे ताज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज़्ज़त कैसी
लोग कहते हैं, मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिए ग़रीबो में शराफत कैसी ?
नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा
जब हमें जीस्त के अदवार परखने होंगे
अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम
हमको ताज़ीम के मेआर परखने होंगे ।
हम ने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन
हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िया बख्शी है
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बख्शी है ।
लेकिन इन तल्ख मुबाहिस से भला क्या हासिल ?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे ।
वजह-ए-बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ !

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