संसद का मानसून सत्र सामने है। कांग्रेस ने बरसात में कम्बल ओढ़ने जैसा मुद्दा " महिला आरक्षण विधेयक " का बेसुरा राग अलाप दिया है। बेसुरा इसलिए कह रहा हूँ कि, कांग्रेस ने इस बिल को बिना किसी शर्त के समर्थन देने की बात कही है।
महिला आरक्षण विधेयक को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं। संसद में महिला आरक्षण बिल 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और इसका कई पुरुष सांसदों ने भारी विरोध किया था। फिर साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दोबारा पेश होने के बाद राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन लोकसभा में आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया।
तीसरे मोर्चे के घटक समाजवादी दलों सपा, बसपा, राजद ने इस बिल के प्रारूप का विरोध किया था। उंन्होने संसद में 33% महिलाओं के प्रतिनिधित्व में दलित,आदिवासी और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी इस आरक्षण में आरक्षण की माँग की थी।
ये शर्त जायज भी है। ज्ञात हो नेताजी मुलायम सिंह, लालू जी, शरद यादव, रामविलास पासवान,मायावती सहित सभी गैर कांग्रेसी गैर भाजपाई नेताओ का ये मानना था कि, दलित, ओबीसी महिलाओं के लिए अलग कोटा होना चाहिए और 33 फीसदी आरक्षण में अलग से कोटा होना चाहिए। सवर्ण और दलित, ओबीसी महिलाओं की सामाजिक हालत में फर्क होता है और दलित, ओबीसी महिलाओं ने ज्यादा शोषण झेला है। महिला बिल के रोटेशन के प्रावधानों में विसंगतियां हैं जिसे दूर करना चाहिए और फिर बिल पास कराना चाहिए।
कांग्रेस इस बिल का बिना शर्त समर्थन क्यों करना चाहती है ? क्या जिन कारणों से इसका विरोध हुआ था ,वो अब बदल गए ?
सनद रहे, जातीय जनगणना के मामले में कांग्रेस और बीजेपी पार्टियां आपस मे मौसेरी बहने हैं। अब महिला आरक्षण बिल के गड़े मुर्दे को खोदने के पीछे इनकी क्या फिक्सिंग है ? ये समझ से परे है।
गठबंधन और सरकार की घेराबंदी का समय है। ऐसे में सामाजिक न्याय, घोटाले, मोदी चोरो ,बेरोजगारी, सीमा सुरक्षा, महिला सुरक्षा ,किसान ,जवान के मुद्दे को छोड़कर ये क्या बहनापा निभाया जा रहा है ? ये नही चलेगा।
बाबुल इनायत
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