Wednesday, October 10, 2018

विभाजनकारी संघी पाठशाला के संकीर्ण विचार के छात्र नरेंद्र मोदी ने कल हरियाणा में दीनबंधु सर छोटूराम को नीचा दिखाया।

विभाजनकारी संघी पाठशाला के संकीर्ण विचार के छात्र नरेंद्र मोदी ने कल हरियाणा में दीनबंधु सर छोटूराम को नीचा दिखाया। प्रधानमंत्री की सोच पर तरस आता है। फेंकू और कृत्रिम स्वभाव के धनी मोदी जी ने हरियाणवी बोली में भाषण की शुरुआत करी। वैसे ये हर प्रदेश में जाकर वहाँ की भाषा में शुरुआती दो-तीन वाक्य बोलते है तो बड़े बनावटी लगते है।
ख़ैर, कल प्रधानमंत्री मोदी ने सर छोटूराम के संपूर्ण व्यक्तित्व को उन्हें “जाटों का मसीहा” बताकर समेट दिया। मुझे इस बात पर सख़्त आपत्ति है। ये विषैले संघी लोग कमेरे और श्रमशील वर्गों के महापुरुषों को अब उनकी जाति तक ही सीमित करने की साज़िश रचने लग गए है। महापुरुष किसी जाति विशेष के नहीं होते। अगर मोदी जी सर छोटूराम को केवल जाटों का मसीहा समझते हैं तो वो देश के करोड़ों ग़रीब किसान मजदूरों के नेता का कद छोटा कर रहे हैं। अरे मोदी जी, आपके शरणार्थी संघी गुरु उनके पैरों की धूल भी नहीं है।
दीनबंधु चौधरी छोटूराम सिर्फ़ जाटों के मसीहा नहीं थे, बल्कि वे समस्त किसान क़ौम, कमेरे और कामगारों के मसीहा थे। ऐसी शख़्सियत को सिर्फ़ जाटों का मसीहा कहना, उनकी तौहीन करने वाली बात है।
मोदी जी, दलित और पिछड़े लोगों ने उन्हें 'दीन बंधु' माना जबकि अंग्रेज़ों ने उन्हें 'सर' की उपाधि दी थी। वो उनके काम की वजह से था, ना कि जाति की वजह से। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि उनकी वजह से अविभाजित पंजाब प्रांत में न तो मोहम्मद अली जिन्ना की चल पायी और ना ही हिंदू महासभा की। वो उस पंजाब प्रान्त की सरकार के मंत्री थे जिसका आज दो तिहाई हिस्सा पकिस्तान में है। उन्हें सरकार का मुखिया बनने का अवसर मिला तो उन्होंने कहा कि तत्कालीन पंजाब प्रांत में मुसलमानों की आबादी 52 प्रतिशत थी। इसलिए उन्होंने किसी मुसलमान को ही मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की और खुद मंत्री बने रहे. इसलिए ही उन्हें 'रहबर-ए-हिन्द' की उपाधि दी गयी थी।
मोदी जी, ऐसी महान शख़्सियत को एक क्षेत्र और जाति के दायरों में ही सीमित करने की कोशिश मत किजीए।


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