धार्मिक जुलूस धीरे धीरे भय का प्रतीक बनता जा रहा है
अभी रामनवी के मौके से मुल्क के कई हिस्सों में छिट पुट दंगे हुए और होने को हैं प्रशाषन अक्सर जगहों पर फेल है
ऐसे संगीन हालात में हम सिर्फ किसी सरकार को दोष देकर बरी नही हो सकते आखिर कौन से तत्व हैं जो हमे लड़ाना चाहते हैं ?
क्या बहुसंख्यक समाज इतना असहाय लाचार और बीमार हो चुका है कि चन्द दंगाई इन्हें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक हांक रहा है ...
जब बार बार हमें ये बात बताई जाती है कि बहुसंख्यक का बेश्तर हिस्सा अभी भी अत्यंत सेक्युलर है तो ,फिर ऐसे मौकों से बेश्तर अत्यंत सेक्युलर तबका किस ग्रह पर चला जाता है ?
चन्द दंगाई मिलकर पूरे शहर को आग लगा देते हैं एक वर्ग विशेष को भयभीत करने की कोशिश करते हैं ,अखहिर ऐसे मौकों से वो लोग कहाँ छुप जाते हैं जो गंगा जमुना की मिसाल देते हैं ?
क्या वर्ग विशेष ये मान ले कि बहुसंख्यक समाज का बेश्तर हिस्सा दंगाई बन चुका है या बनने की राह पर अग्रसर है ....
यहां सवाल डायरेक्ट बहुसंख्यक समाज के नियत पर उठता है कि जब दंगे करने वाले चन्द लोग हैं तो आप उन्हें रोक क्यों नही लेते ,,,
आप का चुप रहना मौन समर्थन समझा जाएगा ,,आप खुद ही कहते हैं कि दंगाई नगण्य हैं तो फिर ये मिट क्यों नही जाते ,,, ये दिन ब दिन मजबूत कैसे होते जा रहे हैं ,, ?
क्या हम ये मान लें कि अक्सर बहुसंख्यक साम्प्रदायिक हो चुका है ?
ये चन्द सवालात हैं जो बहुसंख्यक समाज को कटघडे में खड़ा करने के लिए काफी है , जो लोग सेकुलरिज्म की डफली पीटते हैं उन्हें चाहिए कि अन्तर्वलोकन करें ,।।।
अभी रामनवी के मौके से मुल्क के कई हिस्सों में छिट पुट दंगे हुए और होने को हैं प्रशाषन अक्सर जगहों पर फेल है
ऐसे संगीन हालात में हम सिर्फ किसी सरकार को दोष देकर बरी नही हो सकते आखिर कौन से तत्व हैं जो हमे लड़ाना चाहते हैं ?
क्या बहुसंख्यक समाज इतना असहाय लाचार और बीमार हो चुका है कि चन्द दंगाई इन्हें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक हांक रहा है ...
जब बार बार हमें ये बात बताई जाती है कि बहुसंख्यक का बेश्तर हिस्सा अभी भी अत्यंत सेक्युलर है तो ,फिर ऐसे मौकों से बेश्तर अत्यंत सेक्युलर तबका किस ग्रह पर चला जाता है ?
चन्द दंगाई मिलकर पूरे शहर को आग लगा देते हैं एक वर्ग विशेष को भयभीत करने की कोशिश करते हैं ,अखहिर ऐसे मौकों से वो लोग कहाँ छुप जाते हैं जो गंगा जमुना की मिसाल देते हैं ?
क्या वर्ग विशेष ये मान ले कि बहुसंख्यक समाज का बेश्तर हिस्सा दंगाई बन चुका है या बनने की राह पर अग्रसर है ....
यहां सवाल डायरेक्ट बहुसंख्यक समाज के नियत पर उठता है कि जब दंगे करने वाले चन्द लोग हैं तो आप उन्हें रोक क्यों नही लेते ,,,
आप का चुप रहना मौन समर्थन समझा जाएगा ,,आप खुद ही कहते हैं कि दंगाई नगण्य हैं तो फिर ये मिट क्यों नही जाते ,,, ये दिन ब दिन मजबूत कैसे होते जा रहे हैं ,, ?
क्या हम ये मान लें कि अक्सर बहुसंख्यक साम्प्रदायिक हो चुका है ?
ये चन्द सवालात हैं जो बहुसंख्यक समाज को कटघडे में खड़ा करने के लिए काफी है , जो लोग सेकुलरिज्म की डफली पीटते हैं उन्हें चाहिए कि अन्तर्वलोकन करें ,।।।
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